लिए दिखाई दे चुके हैं।
वे पाँचों आदमी गठरी लिए हुए बाग के बीचोंबीच वाले उस मकान में पहुंचे जिसमें पहले किशोरी थी। जब उस मकान के अन्दर पहुंच गये तो उन लोगों ने चकमक से आग झाड़ मशाल जलाई और गठरी को बँधी-बंधाई जमीन पर छोड़कर आपस में यों बातचीत करने लगे
एक-अच्छा, अब क्या करना चाहिए?
बूसरा-गठरी को इसी जगह छोड़कर राजमहल में पहुँचना और अपना काम करना चाहिए।
तीसरा-नहीं-नहीं, पहले इस गठरी को ऐसी जगह रखना या पहुँचाना चाहिए जिससे सवेरा होते ही किसी-न-किसी की निगाह इस पर अवश्य पड़े।
चौथा-बाग के इस हिस्से में जब कोई रहता ही नहीं, फिर किसी की निगाह इस पर क्यों पड़ने लगी?
पांचवां-अगर ऐसा है तो इसे भी अपने साथ ही राजमहल में ले चलना।
पहला- अजब आदमी हो, राजमहल में अपना जाना तो कठिन हो रहा है तुम कहते हो, गठरी भी लेते चलो।
दूसरा-फिर इस बाग में इस गठरी का रखना बेकार ही है जहां कोई आदमी रहता ही नहीं!
चौथा-बस, अब इसी हुज्जत में रात बिता दो! अभी पहले अपना असल काम तो कर लो जिसके लिए आये हो, चलो, पहले तहखाना खोलो।
दूसरासरा-ठीक है, मैं भी यही उचित समझता हूँ।
इतना कहकर वह खड़ा हो गया और अपने साथियों को भी उठने का इशारा किया।
उन लोगों ने वह बँधी-बँधाई गठरी तो उसी जगह छोड़ दी और बीच वाले कमरे के दरवाजे पर पहुंचे जिसमें ताला बन्द था। एक आदमी ने लोहे की सलाई के सहारे ताला खोला और इसके बाद सब-के-सब उस कमरे के अन्दर जा पहुँचे। यह कमरा इस समय भी हर तरह से सजा और अमीरों के रहने लायक बना हुआ था। पहले तो उन आदमियों ने मशाल की रोशनी में वहाँ की हरएक चीज को अच्छी तरह गौर से देखा और इसके बाद सभी ने मिलकर वहाँ का फर्श जो जमीन पर बिछा हुआ था उठा डाला। यहाँ की जमीन संगमरमर के चौखूटे पत्थर के टुकड़ों से बनी हुई थी जिसे देख एक ने कहा--
एक-अगर हम लोगों का अन्दाज ठीक है और वास्तव में इसी कमरे का पता