पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२२२

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के कारण उसे ऐसा करना पड़ा था।

कमलिनी-पहले तो मैं भी ऐसा ही समझती थी और भूतनाथ ने भी इसके सिवा और कोई सबब अपने गायब होने का नहीं कहा था, मगर अब जो बातें मालूम हुई हैं वे बहुत ही भयानक हैं और इस योग्य हैं कि उनका फल भोगने के डर से उसका जहाँ तक हो अपने को छिपाना उचित ही था। ओफ! भूतनाथ ने मुझे बड़ा धोखा दिया। अगर भूतनाथ के कागजात जो मनोरमा के कब्जे में थे और जो मेरे उद्योग से भूतनाथ को मिल गये थे, इस समय मौजूद होते तो बेशक बहुत-सी बातों का पता लगता, मगर अफसोस! अपनी भूल का दण्ड सिवाय अपने और किसको दूं?

कमला–बहिन, चाहे जो हो मैं अपनी मां की नसीहत कदापि भूल नहीं सकती और न उसके विपरीत ही कुछ कर सकती हूँ। ईश्वर उसकी आत्मा को सुखी करे, वह बड़ी ही नेक थी। जिस समय चाचा ने मेरे बाप के मरने की खरब थी, उस समय वह बहुत ही बीमार थी। सब लोग तो रोने-पीटने लगे, मगर उसकी आँखों में आँसू की बंद भी दिखाई नहीं दी। इसका कारण लोगों ने यही बताया कि रंज बहुत ज्यादा है जिससे यह बेसुध हो रही है, मगर मेरी मां ने मुझे चपके से बुला के समझाया और यह भी कहा कि 'बेटी! मैं खूब समझती हूँ कि तेरा बाप मरा नहीं है, बल्कि कहीं छिपा बैठा है, और वास्तव में उसका चाल-चलन ऐसा नहीं कि वह हम लोगों को अपना मुँह दिखाए मगर क्या किया जाय वह मेरा पति है, किसी के आगे उसकी निन्दा करना मेरा धर्म नहीं है। मैं खूब समझती हूँ कि अबकी दफे की बीमारी से मैं किसी तरह बच नहीं सकती, इसीलिए तुझे समझाती हूँ कि यदि कदाचित् तेरा बाप तुझे मिल जाय तो तू उससे किसी तरह की भलाई की आशा न रखना। हाँ, तेरा चाचा बहुत ही लायक है, वह सिवाय भलाई के तेरे साथ बुराई कभी न करेगा, मगर मेरी समझ में नहीं आता कि उसने स्वयं अपने भाई के मरने की झूठी खबर क्यों उडाई। खैर, जो हो मैं अपने सिर को कसम देकर कहती हूँ कि तू अपना चाल-चलन को बहत सम्हाले रहना और वही काम करना जिसमें किशोरी का भला हो, क्योंकि उसका नमक मेरे और तेरे रोम-रोम में भिदा हुआ है और साथ ही मुझे इस बात का भी पूरा विश्वास है कि किशोरी तुझे जी से चाहती है और वह जो कुछ करेगी तेरे लिए सब अच्छा ही करेगी। बाकी रहा किशोरी की मां और किशोरी का नाना, सो किशोरी की माँ एक ऐसे आदमी के पाले पड़ी है कि जिसके मिजाज का कोई ठिकाना नहीं, ताज्जुब नहीं कि किसी दिन उसे खुद अपनी जान दे देनी पड़ जाय, और किशोरी का नाना परले सिरे का क्रोधी है, अतएव सिवाय किशोरी के तुझे सहारा देने वाला मुझे कोई दिखाई नहीं देता।"

इतना सुनते-सुनते किशोरी को अपनी माँ याद आ गयी और उसकी आंखों से टप-टप आँस की बंदें गिरने लगीं। कमला का भी यही हाल था। कमलिनी ने दोनों के आंसू पोंछे और समझा-बझाकर दोनों को शान्त किया। थोडी देर तक बातचीत बन्द रही, इसके बाद फिर शुरू हुई।

कमला—(कमलिनी से) तो क्या मैं सुन सकती हूँ कि मेरे बाप ने क्या काम किये हैं जिनके लिए आज उसको यह दिन देखना पड़ा?