पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२१४

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शब्दों में पूरी हो जाने वाली बात को भी बिना हजार शब्दों का लपेट दिए तुम नहीं रहते। साफ क्यों नहीं कहते कि क्या हुआ?

नकाबपोश―अफसोस, अभी तक तुम्हारी बुद्धि की कतरनी को चाटने के लिए शान का पत्थर नहीं मिला। अच्छा, तब मैं साफ-साफ ही कहता हूँ सुनो। तुम्हारे बाप का छिपा हुआ दोष बरसात की बदली में छिपे हुए चन्द्रमा की तरह यकायक प्रकट हो गया। इसी से तुम्हारी माँ भी दुश्मन के काबू में, शेर के पंजे में बेचारी हिरनी की तरह पड़ गई और उसी कारण से तुम पर भी उल्लू के पीछे शिकारी बाज की तरह धावा हुआ ही चाहता है। सम्भव है कि चारपाई के खटमल की तरह जब तक कोई ढूँढ़ने के लिए तैयार हो, तुम गायब हो जाओ। मगर मेरी समझ में फिर भी गरम पानी का डर बना ही रहेगा।

नानक―(चिढ़ कर) आखिर तुम न मानोगे! खैर, मैं समझ गया कि मेरे बाप का कसूर वीरेन्द्रसिंह को मालूम हो गया। परन्तु उनके, तेजसिंह के और कामिनी के मुँह से निकले हुए ‘क्षमा’ शब्द पर मुझे बहुत भरोसा था। यद्यपि दोष जान लेने के पहले ही उन्होंने ऐसा किया था।

नकाबपोश―नहीं-नहीं, तुम्हारे बाप ने वीरेन्द्रसिंह का जो कुछ कसूर किया था वह तो उनके ऐयारों को पहले ही मालूम हो गया था। मगर इन नये-नये प्रकट भये हुए दोषों के सामने वे दोष ऐसे थे, जैसे सूर्य के सामने दीपक, चन्द्रमा के सामने जुगनू, दिन के आगे रात या मेरे मुकाबले में तुम!

नानक―अगर तुम में यह ऐब न होता तो तुम बड़े काम के आदमी थे। देख रहे हो कि हम लोग सड़क पर बेमौके खड़े हैं, मगर फिर भी संक्षेप में बात पूरी नहीं करते!

नकाबपोश―इसका सबब यही है कि मेरा नाम संक्षेप में या अकेले में नहीं है। गोपी और कृष्ण इन दोनों शब्दों से मेरा नाम बड़े लोगों ने ठोंक मारा है। अस्तु बड़े लोगों की इज्जत का ध्यान करके मैं अपने नाम को स्वार्थ की पदवी देने के लिए सदैव उद्योग करता रहता हूँ। इसी से गोपियों के प्रेम की तरह मेरी बातों का तौल नहीं होता और जिस तरह कृष्णजी त्रिभंगी थे, उसी तरह मेरे मुख से निकला प्रत्येक शब्द त्रिभंगी होता है। हाँ, यह तुमने ठीक कहा कि सड़क पर खड़े रहना भले मनुष्यों का काम नहीं है। अस्तु, थोड़ी दूर आगे बढ़ चलो और नदी के किनारे बैठ कर मेरो बात इस तरह ध्यान देकर सुनो जैसे बीमार लोग वैद्य के मुँह से अपनी दवा का अनुपान सुनते हैं। बस, जल्द बढ़ो देर न करो, क्योंकि समय बहुत कम है, कहीं ऐसा न हो कि विलम्ब हो जाने के कारण वीरेन्द्रसिंह के ऐयार लोग आ पहुँचे और उस चरणानुरागी पात्र की मजबूती का इल्जाम तुम्हारे माथे ठोंके, जिसके कारण जंगली काँटों और कंकड़ियों से बच कर यहाँ तक वे लोग पहुँचेंगे।

नानक―(झुँझला कर) बस माफ कीजिए, बाज आए आपकी बातें सुनने से। जिस सबव से हम पर आफत आने वाली है, उसका पता हम आप लगा लेंगे। मगर द्रौपदी के चीर की तरह समाप्त न होने वाली बातें तुमसे न सुनेंगे।