इसमें की पढ़ी गई परन्तु इतने ही में सभी का कलेजा काँप गया है। निःसन्देह तुम बहुत कड़ी सजा पाने के अधिकारी हो, अतएव तुम्हें इस समय कैद करने का हुक्म दिया जाता है, फिर जो होगा देखा जायगा।
भूतनाथ―(कुछ सोचकर) मालूम होता है कि मेरी अर्जी पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और इस बलभद्रसिंह को सभी ने सच्चा समझ लिया है।
तेजसिंह―बेशक बलभद्रसिंह सच्चे हैं और इस विषय में अब तुम हम लोगों को धोखा देने का उद्योग मत करो, हाँ यदि कुछ कहना है तो इन चिट्ठियों के बारे में कहो जो बेशक तुम्हारे हाथ की लिखी हुई हैं और तुम्हारे दोषों को आईने की तरफ साफ खोल रही हैं।
भूतनाथ―हाँ इन चिट्ठियों के विषय में भी मुझे बहुत-कुछ कहना है, परन्तु सभी लोगों के सामने कुछ कहना उचित नहीं समझता क्योंकि आप लोग मेरा फैसला नहीं कर सकते। - तेजसिंह―सो क्यों, क्या हम लोग तुम्हें सजा नहीं दे सकते?
भूतनाथ―यदि आप धर्म की लकीर को बेपरवाही के साथ लाँघने से कुछ भी संकोच कर सकते हैं तो मेरा कहना सही है, क्योंकि आप लोगों के मालिक राजा वीरेन्द्रसिंह मेरे पिछले कसूरों को माफ कर चुके हैं और इधर राजा वीरेन्द्रसिंह का जो-जो काम मैं कर चुका हूँ उस पर ध्यान देने योग्य भी वे ही हैं। इसी से मैं कहता हूँ कि बिना मालिक के कोई दूसरा मेरे मुकद्दमे को नहीं देख सकता।
तेजसिंह―(कुछ देर तक सोचने के बाद) तुम्हारा यह कहना सही है। खैर जैसा तुम चाहते हो वैसा ही होगा और राजा साहब ही तुम्हारे मामले का फैसला करेंगे मगर मुजरिम को गिरफ्तार और कैद करना तो हम लोगों का काम है।
भूतनाथ―बेशक, कैद करके जहाँ तक जल्द हो सके, मालिक के पास ले जाना जरूर आप लोगों का काम है, मगर कैद में बहुत दिनों तक रखकर किसी को कष्ट देना आपका काम नहीं क्योंकि कदाचित् वह निर्दोष ठहरे जिसे आपने दोषी समझ लिया हो।
तेजसिंह―क्या तुम फिर भी अपने की बेकसूर साबित करने का उद्योग करोगे?
भूतनाथ―बेशक मैं बेकसूर बल्कि इनाम पाने के योग्य हूँ परन्तु आप लोगों के सामने जिन पर अक्ल की परछाईं तक नहीं पड़ी है मैं अब कुछ भी न कहूँगा। आप यह न समझिए मैं केवल इसी बुनियाद पर अपने को छुड़ा लूँगा कि महाराज ने मेरा कसूर माफ कर दिया है। नहीं, बल्कि मेरा मुकदमा कोई अनूठा रंग पैदा करके मेरे बदले में किसी दूसरे ही को कैदखाने की कोठरी का मेहमान बनावेगा।
तेजसिंह―खैर, मैं भी तुम्हें बहुत जल्द राजा वीरेन्द्रसिह के सामने हाजिर करने का उद्योग करूँगा।
इतना कहकर तेजसिंह ने देवीसिंह तरफ देखा और देवीसिंह ने भूतनाथ को तहखाने की कोठरी में ले जाकर बन्द कर दिया।
इस काम से छुट्टी पाकर तेजसिंह ने चाहा कि किसी ऐयार के साथ भूतनाथ और भगवनिया को आज ही रोहतासगढ़ रवाना करें और इसके बाद कागज के मुट्ठे