पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२०७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
206
 

जिसे लक्ष्मीदेवी ने याद दिलाया था।

कमलिनी―(खुशी से बलभद्रसिंह का हाथ पकड़ के और लक्ष्मीदेवी की तरफ करके) देखो बहिन, यह पुराना निशान अभी तक मौजूद है। ऐसी अवस्था में मुझे कोई धोखा दे सकता है? कभी नहीं।

बलभद्रसिंह―(हँसकर) इस निशान को लाड़िली अच्छी तरह पहचानती होगी क्योंकि इसी ने बीमारी की अवस्था में दाँत काटा था।(लम्बी साँस लेकर)अफसोस, आज और उस जमाने के बीच में जमीन-आसमान का फर्क पड़ गया है। ईश्वर, तेरी महिमा कुछ कही नहीं जाती।

बलभद्रसिंह के मोढ़े का निशान देखकर कमलिनी, लाड़िली और लक्ष्मी देवी का शक जाता रहा और इसके साथ-ही-साथ तेजसिंह इत्यादि ऐयारों को भी निश्चय हो गया कि यह बेशक कमलिनी, लक्ष्मीदेवी और लाड़िली का बाप है और भूतनाथ अपनी बदमाशी और हरामजदगी से हम लोगों को धोखे में डालकर दुःख दिया चाहता है।

थोड़ी देर तक बाप-बेटियों के बीच में वैसी ही मुहब्बत-भरी बातें होती रहीं जैसी कि बाप-बेटियों में होनी चाहिये और बीच-ही-बीच में ऐयार लोग भी हाँ, नहीं, ठीक है, बेशक इत्यादि करते रहे। इसके बाद इस विषय पर विचार होने लगा कि भूतनाथ के साथ इस समय क्या सलूक करना चाहिए। बहुत देर तक वाद-विवाद होने पर यह निश्चय ठहरा कि भूतनाथ को कैद कर रोहतासगढ़ भेज देना चाहिए, जहाँ उसके किए हुए दोषों की पूरी-पूरी तहकीकात समय मिलने पर हो जायगी, हाँ लगे हाथ उस कागज के मुट्ठ को अवश्य पढ़कर समाप्त कर देना चाहिए जिससे भूतनाथ की वदमाशियों तथा पुरानी घटनाओं का पता लगता है―तथा इन सब बातों से छुट्टी पाकर किशोरी, कामिनी लक्ष्मी देवी, कमलिनी और लाड़िली को रोहतासगढ़ में चलकर आराम के साथ रहना चाहिए।

ऊपर लिखी बातों में जो तै हो चुकी थीं, कई बातें कमलिनी की इच्छानुसार न थीं मगर तेजसिंह की जिद से, जिन्हें सब लोग बड़ा बुजुर्ग और बुद्धिमान मानते थे, लाचार होकर उसे भी मानना ही पड़ा।

तेजसिंह उसी समय कमरे के बाहर चले गए और जफील बजाकर देवीसिंह तथा भैरोंसिंह का अपनी तरफ ध्यान दिलाया। जब दोनों ऐयारों ने इधर देखा तो तेज सिंह ने कुछ इशारा किया जिससे वे दोनों समझ गए कि भूतनाथ को कैदियों की तरह बेबस करके मकान के अन्दर ले जाने की आज्ञा हुई है। देवीसिंह ने यह बात भूतनाथ से कही, भूतनाथ ने सोचकर सिर झुका लिया और तब हथकड़ी पहनने के लिए अपने दोनों हाथ देवीसिंह की तरफ बढ़ाए। देवीसिंह ने हथकड़ी और बेड़ी से भूतनाथ को दुरुस्त किया और इसके बाद दोनों ऐयार उसे डोंगी पर चढ़ाकर मकान के अन्दर ले आए। इस समय भूतनाथ की निगाह फिर उस कागज के मुट्ठे और पीतल की सन्दूकड़ी पर पड़ी और पुनः उसके चेहरे पर मुर्दनी छा गई।

तेजसिंह―भूतनाथ, तुम्हारा कमूर अब हम सब लोगों को मालूम हो चुका है। यद्यपि यह कागज का मुट्ठा अभी पूरा-पूरा पढ़ा नहीं गया, केवल चार-पाँच चिट्ठियाँ ही