लगाने के लिए तारासिंह को बाहर भेजा और तारासिंह ने लौटकर खबर दी कि भूतनाथ और बलभद्रसिंह में लड़ाई बल्कि यों कहना चाहिए कि जबरदस्त कुश्ती हो रही है।
यह सुनते ही कमलिनी, लाड़िली, देवीसिंह और तेजसिंह बाहर चले गए और देखा कि वास्तव में वे दोनों लड़ रहे हैं और भैरोंसिंह अलग खड़ा तमाशा देख रहा है। भूतनाथ और बलभद्रसिंह की लड़ाई तेजसिंह पहले ही देख चुके थे और उन्हें मालूम हो चुका था कि बलभद्रसिंह भूतनाथ से बहुत जबरदस्त है मगर इस समय जिस खूबी और बहादुरी के साथ भूतनाथ लड़ रहा था उसे देखकर तेजसिंह को ताज्जुब मालूम हुआ और उन्होंने तारासिंह की तरफ देख के कहा, “इस समय भूतनाथ बड़ी बहादुरी से लड़ रहा है। मैं समझता हूँ कि पहली दफे जब हमने भूतनाथ की लड़ाई देखी थी तो उस समय डर और घबराहट ने भूतनाथ की हिम्मत तोड़ दी थी मगर इस समय क्रोध ने उसकी ताकत दूनी कर दी है, लेकिन भैरों चुपचाप खड़ा तमाशा क्यों देख रहा है?”
देवीसिंह―जो हो, पर इस समय उचित है कि पार चल के इन लोगों को अलग कर देना चाहिए, डोंगी एक ही है जो इस समय उस पार गई हुई है।
कमलिनी―सब्र कीजिए, मैं दूसरी डोंगी ले आती हूँ, यहाँ डोंगियों की कमी नहीं है।
इतना कहकर कमलिनी चली गई और थोड़ी देर में मोटे और रोगनी कपड़े की एक तोशक उठा लाई जिसमें हवा भरने के लिए एक कोने पर सोने का पेंचदार मुँह बना हुआ था और उसी के साथ एक छोटी भाथी भी थी। तेजसिंह ने उसी भाथी से बात-की-बात में हवा भरके उसे तैयार किया और उस पर तेजसिंह और देवीसिंह बैठकर पार जा पहुँचे।
तेजसिंह और देवीसिंह को यह देखकर बड़ा ही ताज्जुब हुआ कि दोनों आदमियों का खंजर और ऐयारी का बटुआ भैरोंसिंह के हाथ में है और वे दोनों बिना हर्बे के लड़ रहे हैं। तेजसिंह ने बलभद्रसिंह को और देवीसिंह ने भूतनाथ को पकड़कर अलग किया।
बलभद्रसिंह―इस नालायक कमीने को इतना करने पर भी शर्म नहीं आती, चूल्लू-भर पानी में डूब नहीं मरता और मुकाबला करने के लिए तैयार होता है!
भूतनाथ―मैं कसम खाकर कहता हूँ कि यह असली बलभद्रसिंह नहीं है। वह बेचारा अभी तक कैद में है और इसी की बदौलत कैद में है। जिसका जी चाहे मेरे साथ चले, मैं दिखाने के लिए तैयार हूँ।
बलभद्रसिंह―साथ ही इसके यह भी क्यों नहीं कह देता कि चिट्ठियाँ भी तेरे हाथ की लिखी हुई नहीं हैं!
भूतनाथ―हाँ-हाँ, तेरे हाथ की लिखी वे चिट्ठियाँ भी मेरे पास मौजूद हैं, जिनकी बदौलत बेचारा बलभद्रसिंह अभी तक मुसीबत झेल रहा है।
यह कहकर भूतनाथ ने अपना ऐयारी का बटुआ लेने के लिए भैरोंसिंह की तरफ हाथ बढ़ाया।