भूतनाथ–ठीक है, मगर मैं उस कागज के मठ्ठे को याद करके नहीं डरा था बल्कि मुझे इस बात का गुमान भी न था कि गठरी में कोई कागज का मुट्ठा भी है, सच तो यह है कि मैं उस पीतल की सन्दूकड़ी को याद करके डरा था जो उस समय तेजसिंह से सामने पड़ी हुई थी। मैं यही समझे हुए था कि उस गठरी के अन्दर केवल एक पीतल की सन्दूकड़ी है और वास्तव में उसकी याद से ही मैं कांप जाता हूँ। उसकी सुरत देखने से जो हालत मेरी होती है सो मैं ही जानता हूँ, मगर साथ ही इसके मैं यह भी कहे देता हूँ कि उस पीतल की सन्दूकड़ी के अन्दर जो चीज है उससे कमलिनी, तारा और लाड़िली या असली बलभद्रसिंह का कोई सम्बन्ध नहीं है। इसका विश्वास आपको उसी समय हो जायगा जब वह सन्दूकड़ी खोली जायगी।
भूतनाथ की बातों ने देवीसिंह को चक्कर में डाल दिया। वह कुछ भी नहीं समझ सकते थे कि वास्तव में क्या बात है। देवीसिंह ने जो बातें भूतनाथ से पूछी उनका जवाब भूतनाथ ने बड़ी खूबी के साथ दिया, न तो कहीं अटका और न किसी तरह का शक रहने दिया और ये ही बातें थीं जिन्होंने देवीसिंह को तददुद, परेशानी और आश्चर्य में डाल दिया था। बहुत देर गौर करने के बाद देवीसिंह ने पुनः भूतनाथ से पूछा।
देवीसिंह-अच्छा अब तुम क्या चाहते हो सो कहो!
भूतनाथ-मैं केवल इतना ही चाहता हूं कि आप मुझे इस मकान में ले चलिए और तेजसिंह तथा तीनों बहिनों से कहिए कि मेरे मुकदमे की पूरी-पूरी जाँच करें, आप लोगों के आगे निर्दोष होने के विषय में जो कुछ मैं सबूत दूँ उसे अच्छी तरह सुनें समझें और देखें तथा इसके बाद जो दगाबाज ठहरे उसे सजा दें, बस।
देवीसिंह-अच्छा, मैं जाकर तेजसिंह और कमलिमी से ये बातें कहता हूँ, फिर जैसा वे कहेंगे किया जायगा।
भूतनाथ-तो आप एक काम और कीजिए।
देवीसिंह-वह क्या?
इसके जवाब में भूतनाथ ने अपने ऐयारी के बटुए में से एक तस्वीर निकाल कर देवीसिंह के हाथ में दी और कहा, "आप यह तस्वीर लक्ष्मीदेवी (तारा) को दिखाएँ और पूछे कि तुम्हारा बाप यह है या वह दगाबाज जो सामने बैठा हुआ अपने को बलभद्रसिंह बताता है?"
देवीसिंह ने बड़े गौर से उस तस्वीर को देखा। यह तस्वीर पूरी तो नहीं मगर फिर भी बलभद्रसिंह की मूरत से बहुत-कुछ मिलती थी। भूतनाथ की बातों ने और उसके सवाल-जवाब के ढंग ने देवीसिंह के दिल पर मामूली असर पैदा नहीं किया था, बल्कि सच तो यह है कि उसने थोड़ी देर के लिए देवीसिंह की राय बदल दी थी। देवीसिंह ने सोचा कि ताज्जब नहीं भूतनाथ बहुत-कुछ सच ही कहता हो और बलभद्रसिंह वास्तव में असली बलभद्रसिंह न हो क्योंकि जहाँ तक मैंने देखा है बलभद्रसिंह के मिलने में जितना जोश कमलिनी, लाडिली और तारा के दिल में पैदा हुआ था उतना बलभद्रसिंह के दिल में अपनी तीनों लड़कियों को देग्यकर पैदा नहीं हुआ, यह एक ऐसी बात है