पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१९६

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हमारे चाचा तेजसिंह हैं!"

तेजसिंह के नाम ने भूतनाथ को चौंका दिया और उसके दिल में एक नया शक पैदा हुआ। इसके साथ ही उसके चेहरे की रंगत ने पुनः पल्टा खाया अर्थात् जर्दी के बाद सफेदी ने अपना कुदरती रंग दिखाया और भूतनाथ का कांपता हुआ पैर धीरे-धीरे आगे की तरफ बढ़ने लगा। जब ये लोग मकान के पास पहुंच गये तो भूतनाथ ने देखा कि भैरोंसिंह और देवीसिंह भी अन्दर से निकल आये हैं और नफरत की निगाह से उसे देख रहे हैं। जब ये लोग तालाब के किनारे पहुंचे तो भगवनिया ने देखा कि तालाब की मिट्टी न मालूम कहाँ गायब हो गयी है, तालाब पूरा स्वच्छ है, और उसमें मोती की तरह साफ जल भरा हुआ दिखाई देता है। वह बड़े आश्चर्य से तालाब के जल और उसके बीच वाले मकान को देखने लगी।

भैरोंसिंह उन लोगों को ठहरने का इशारा करके मकान के अन्दर गया और थोड़ी देर बाद बाहर निकला, इसके बाद डोंगी खोलकर किनारे पर ले गया और चारों आदमियों को सवार करके मकान के अन्दर ले आया।

श्यामसुन्दरसिंह और भगवानी को विश्वास था कि यह मकान हर तरह के सामान से खाली होगा, यहां तक कि चारपाई, बिछावन और पानी पीने के लिए लोटागिलास तक न होगा, मगर नहीं, इस समय यहाँ जो कुछ सामान उन्होंने देखा, वह बनिस्बत पहले के बेशकीमत और ज्यादा था। इसका कारण यह था कि दुश्मन लोग इस मकान में से वही चीजें ले गये थे जिन्हें वे लोग देख और पा सकते थे, मगर इस मकान के तरखानों और गुप्त कोठरियों का हाल उन्हें मालूम न था जिनमें एक से एक बढ़ के उम्दा चीजें तथा बेशकीमत असबाब मकान सजाने के लिए भरा हुआ था और जिन्हें इस समय कमलिनी ने निकालकर मकान को पहले से ज्यादा खूबसूरती के साथ सजा डाला था और भागे हुए आदमियों में से दो सिपाही और दो नौकर भी आ गये थे जो भाग जाने के बाद भी छिपे-छिपे इस मकान की खोज-खबर लिया करते थे।

तारासिंह, श्यामसुन्दरसिंह, भगवनिया और भूतनाथ उस कमरे में पहंचाए गए जिसमें किशोरी, कामिनी, लक्ष्मीदेवी, कमलिनी, लाड़िली और बलभद्रसिंह वगैरह बैठे हुए थे और किशोरी, कामिनी और लक्ष्मीदेवी सुन्दर मसहरियों पर लेटी हुई थीं।

बलभद्रसिंह को असली सूरत में देखते ही भूतनाथ चौंका और घबड़ाकर दो कदम पीछे हटा, मगर भैरोंसिंह ने जो उसके पीछे था, उसे रोक लिया। बलभद्रसिंह की असली सूरत देखकर भूतनाथ को विश्वास हो गया कि उसका सारा भेद खुल गया और इस बारे में उस समय तो कुछ भी शक न रहा जब उस कागज के मुठे और पीतल की सन्दूकची को भी कमलिनी के सामने देखा जो भूतनाथ की विचित्र जीवनी का पता दे रहे थे, जिस समय भूतनाथ की निगाह उनके चेहरे पर गौर के साथ पड़ी जिनसे रंज और नफरत साफ जाहिर होती थी उस समय उसके दिल में एक हौल-सा पैदा हो गया और उसकी सूरत देखने वालों को ऐसा मालूम हुआ कि वह थोड़ी ही देर में पागल हो जायगा क्योंकि उसके हवास में फर्क पड़ गया था और वह बड़ी ही बेचैनी के साथ चारों तरफ देखने लगा था।