तेजसिंह-इस भूतनाथ का नाम रघुबरसिंह है और नानक इसी का लड़का है, (बलभद्रसिंह से) क्या हेलासिंह मायारानी के बाप का नाम है?
बलभद्रसिंह-जी हाँ, और मायारानी का असल नाम मुन्दर है।
कमलिनी-अच्छा आगे पढ़िये।
तेजसिंह ने दूसरी चिट्ठी पढ़ी। उसमें यह लिखा था"--
मेरे प्यारे दोस्त हेलासिंह,
आपका पत्र पहुँचा। मैं इस बात का उद्योग कर सकता हूँ मगर इस काम में हद से ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। खुल्लमखुल्ला तो आपकी लड़की की शादी राजा गोपालसिंह से नहीं हो सकती क्योंकि राजा गोपालसिंह को आपकी लड़की का विधवा होना मालूम है, हाँ उनका दारोगा अगर हमारे साथ मिल जाय तो कोई करकीब निकल सकती है, लेकिन उसमें भी यह कठिनाई है कि दारोगा लालची है और आप गरीब हैं।
रघुबरसिंह।"
देवीसिंह-वाह-वाह, भूतनाथ तो बड़ा शैतान मालूम होता है! यह सब कांटे क्या उसी के बोए हुए हैं!
कमलिनी-मगर अफसोस है कि आप उसे अपना दोस्त बनाने के लिए कसम खा चुके हैं!
बलभद्रसिंह-मैं ठीक कहता हूँ कि थोड़ी देर बाद देवीसिंहजी को अपने किये पर पछताना पड़ेगा।
लाडिली-खैर, जो होगा देखा जायगा, आप तीसरी चिट्ठी पढ़िये।
बलभद्रसिंह-मालूम नहीं है कि भूतनाथ की चिट्ठी का जवाब हेलासिंह ने क्या दिया था क्योंकि वह चिट्ठी मेरे हाथ नहीं लगी। यह तीसरी चिट्ठी जो आप पढ़ेंगे वह भी भूतनाथ ही की लिखी हुई है।
तेजसिंह तीसरी चिट्ठी पढ़ने लगे। उसमें लिखा हुआ था--
"प्रियवर हेलासिंह
आपने लिखा कि 'यद्यपि मुन्दर विधवा है और उसकी उम्र भी ज्यादा है परंतु नाटी होने के सबब वह ज्यादा उम्र की मालूम नहीं पड़ती' ठीक है, मगर बहुत-सी बातें ऐसी हैं जो औरों को चाहे मालूम न हों, मगर उससे किसी तरह छिपी नहीं रह सकती जिसके साथ उसकी शादी होगी और इसी बात से राजा गोपालसिंह का दारोगा भी डरता है, मगर मैंने भविष्य के लिए उसके खयाल में ऐसे-ऐसे सरसब्ज बाग पैदा कर दिए हैं कि जिसकी बेसुध और मदहोश कर देने वाली खुशबू को वह अभी से सूंघने लग गया है, तिस पर भी मैं इस बात का तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि यह शादी प्रकट रूप से नहीं हो सकती। इसके लिए उस ब्याह वाले दिन ही कोई अनोखी चाल चलनी पड़ेगी। अस्तु, दारोगा साहब ने यह कहा है कि आज के आठवें दिन गुरुवार को संध्या समय दारोगा साहब के बँगले में आप उनसे मिलें, मैं भी वहां मौजूद रहूँगा। फिर जो कुछ तै हो जाय वही ठीक है।
वही रघुबर।”