कमलिनी―वह औरत कौन थी?
बलभद्रसिंह―उसका भी हाल मालूम हो जायगा, जरा सब्र करो! (तेजसिंह से) हाँ साहब, अब वह गठरी खोलिये।
“बहुत अच्छा” कह कर तेजसिंह उठे और गठरी लिये हुए उस तरफ बढ़ गए जहाँ किशोरी, कामिनी और तारा पड़ी थीं। इसके बाद सभी की तरफ देख के बोले, “इस गठरी में क्या है सो देखने के लिए सभी का जी बेचैन हो रहा होगा बल्कि मैं कह सकता हूँ कि तारा सबसे ज्यादा बेचैन होगी इसलिए मैं किशोरी, कामिनी और तारा ही के पास बैठ कर यह गठरी खोलता हूँ जिससे इन्हें उठने और चलने की तकलीफ न होगी, आइये, आप लोग भी इसी जगह आ बैठिये।”
इतना कहकर तेजसिंह वहाँ बैठ गए, बलभद्रसिंह उनके बगल में जा बैठे, और बाकी सभी ने तेजसिंह को इस तरह घेर लिया जैसे किसी मदारी को खेल करते समय मनचले लड़के घेर लेते हैं। तेजसिंह ने गठरी खोली और सभी की निगाह उसके अन्दर की चीजों पर पड़ी।
इस गठरी में पीतल की एक छोटी-सी सन्दूकड़ी थी जिसे कमलदान भी कह सकते हैं और एक मुट्ठा कागजों का था। बलभद्रसिंह ने कहा, “पहले इस कागज के मुट्ठे को खोलो।” तेजसिंह ने ऐसा ही किया और जब कागज का मुट्ठा खोला गया तो मालूम हुआ कि कई चिट्ठियों को आपस में एक-दूसरे के साथ जोड़ के वह मुट्ठा तैयार किया गया है।
तेजसिंह―(मुट्ठा खोलते हुए) इसे शैतान की आँत कहूँ या विधाता की जन्म-पत्री!
बलभद्रसिंह—(हँस कर) आप जो चाहें कह सकते हैं। इन चिट्ठियों और पुर्जो को मैंने क्रम के साथ जोड़ा है, आप शुरू से एक-एक करके पढ़ना आरम्भ कीजिये।
तेजसिंह―बहुत अच्छा।
तेजसिंह ने पहला पुर्जा पढ़ा, उसमें ऊपर की तरफ यह लिखा हुआ था―
“श्रीयुत् रघुबरसिंह योग्य लिखी हेलासिंह का राम-राम।” और बाद में यह मजमून था―
“मेरे प्यारे दोस्त―
“आपको मालूम है कि राजा गोपालसिंह की शादी बलभद्रसिंह की लड़की लक्ष्मीदेवी के साथ होने वाली है, मगर मैं चाहता हूँ कि आप कृपा करके कोई ऐसा बन्दोबस्त करें जिसमें वह शादी टूट जाय और उसके बदले में मेरी लड़की मुन्दर की शादी राजा गोपालसिंह के साथ हो जाय। अगर ऐसा हुआ तो मैं जन्म-भर आपका अहसान मानूँगा और जो कुछ आप कहेंगे करूँगा। मुझे आपकी दोस्ती पर बहुत भरोसा है। शुभम्।”
बलभद्र―लीजिये, पहले नम्बर की चिट्ठी समाप्त!
तारा―रघुबरसिंह किसका नाम है?