पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१८७

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अपना और किशोरी, कामिनी तथा तारा का सब हाल संक्षेप में कह सुनाया, और इसी बीच में तारा भी होश में आकर बातचीत करने योग्य हो गई।

कमलिनी-(तारा से) क्यों बहिन, अब तबीयत कैसी है?

तारा–अच्छी है।

कमलिनी-तुम इस विचित्र मनुष्य को देख कर इतना डरी क्यों? क्या इसे पहचानती हो?

तारा-हाँ, मैं इसे पहचानती हूँ मगर अफसोस कि कि इसका असल भेद अपनी जुबान से नहीं कह सकती। (विचित्र मनुष्य की तरफ देख के) हाय, इस बेचारे ने तो किसी का कुछ भी नुकसान नहीं किया, फिर आप लोग क्यों इसके पीछे पड़े हैं?

कमलिनी-बहिन, मेरी समझ में नहीं आता कि तुम इसका भेद जान के भी इतना क्यों छिपाती हो? क्या तुमने अभी नहीं सुना कि इसके और भूतनाथ के बीच में क्या बातें हुई हैं? मगर फिर भी ताज्जुब है कि इसे तुम अपनायत के ढंग से देख रही हो!

तारा--(लम्बी साँस लेकर) हाय, अब मैं अपने दिल को नहीं रोक सकती। उसमें अब इतनी ताकत नहीं है कि उन भेदों को छिपा सके जिन्हें इतने दिनों तक अपने अन्दर इसलिए छिपा रखा था कि मुसीबत के दिन निकल जाने पर प्रकट किये जायेंगे। नहीं-नहीं, अब मैं नहीं छिपा सकती! बहिन कमलिनी, तु वास्तव में मेरी बहिन है और सगी बहिन है, मैं तुझसे बड़ी हूँ, मेरा ही नाम लक्ष्मीदेवी है।

कमलिनी-(चौंक कर और तारा को गले से लगाकर) ओह! मेरी प्यारी बहिन! क्या वास्तव में तुम लक्ष्मीदेवी हो?

तारा-हाँ, और यह विचित्र मनुष्य हमारा बाप है!

कमलिनी-हमारा बाप बलभद्रसिंह!

तारा–हाँ, यही हमारे-तुम्हारे और लाड़िली के बाप बलभद्रसिंह हैं। कम्बख्त मायारानी की बदौलत मेरे साथ मेरे बाप भी कैदखाने की अंधेरी कोठरी में सड़ते रहे। हरामजादा दारोगा इस पर भी सन्तुष्ट न हुआ और उसने इनको जहर दे दिया मगर ईश्वर ने एक सहायक भेज दिया जिसकी बदौलत इनकी जान बच गई। पर फिर भी उस जहर के तेज असर ने इनका बदन फोड़ दिया और रंग बिगाड़ दिया बल्कि इस योग्य तक नहीं रखा कि तुम इन्हें ठीक से पहचान सको। इतना ही नहीं, और भी बड़े-बड़े कष्ट भोगने पड़े। (रो कर) हाय! अब मेरे कलेजे में दर्द हो रहा है। मैं उन मुसीबतों को बयान नहीं कर सकती! तुम स्वयं अपने पिता ही से सब हाल पूछ लो, जिन्हें मैं कई वर्षों के बाद इस अवस्था में देख रही हूँ!

पाठक, आप समझ सकते हैं कि तारा की इन बातों ने कमलिनी के दिल पर क्या असर किया होगा, तेजसिंह और भैरोंसिंह की क्या अवस्था हुई होगी और देवीसिंह कितने शर्मिन्दा हुए होंगे जिन्होंने पत्थर मार कर उस विचित्र मनुष्य का सिर तोड़ डाला था। कमलिनी दौड़ी हुई अपने बाप के पास गई और उसके गले से चिपट कर रोने लगी। तेजसिंह भी लपक कर उनके पास गये और लखलखे की डिबिया उसकी नाक से