मताबिक पहरा देने वाली कई औरतें भी नंगी तलवारें लिए उस चोर दरवाजे के पास पहुँच कर इधर-उधर पेड़ों और झाड़ियों की आड़ में दुबक रही थीं और धनपत भी उस चोरदरवाजे के बगल ही में एक झाड़ी के अन्दर घुस गई थी। मायारानी अपने को हर बला से बचाये रहने की नीयत से कुछ दूर पर छिप कर बैठ रही।
अब वह समय आ गया कि चोर-दरवाजे की राह से कमलिनी बाग के अन्दर आवे, इसलिए धनपत अपने छिपे रहने वाले स्थान से उठ कर चोर दरवाजे के पास आई और यह विचार कर बैठ गई कि बाहर से कोई आदमी दरवाजा खोलने का इशारा करे तो मैं झट से दरवाजा खोल दूं। इस समय धनपत अपने चेहरे पर नकाब डाले हुए थी और हाथ में खंजर लिए मौका पड़ने पर लड़ने के लिए भी तैयार थी। थोड़ी देर के बाद बाहर से किसी ने चोरदरवाजे पर थपकी मारी। धनपत खुश होकर उठी और झट से दरवाजा खोल कर एक किनारे हो गई। दो आदमी बाग के अन्दर दाखिल हुए। इन दोनों ही का बदन स्याह कपड़ों से ढंका हुआ था और दोनों ही के चेहरों पर नकाब पड़ी हुई थी जिससे रात के समय यह जानना बहुत ही कठिन था कि ये औरतें हैं या मर्द, हाँ लिए उस पर मर्द होने का गुमान हो सकता था।
जब दोनों नकाबपोश बाग के अन्दर आ गए तो धनपत ने चोर-दरवाजा बन्द कर दिया और उन दोनों को अपने पीछे-पीछे आने का इशारा किया। मालूम होता था कि वे दोनों नकाबपोश बेफिक्र हैं और उन्हें इस बात की जरा भी खबर नहीं कि यहां का रंग बदला हुआ है। उन दोनों को साथ लिए धनपत जब उस जगह पहुंची जहाँ पहरा देने वाली लौंडियाँ नंगी तलवारें लिए हुए छिपी हुई थीं, तो खड़ी हो गई और उन दोनों की तरफ देख कर बोली, "आपकी आज्ञानुसार मैंने अपना काम पूरा कर दिया अब मुझे इनाम मिलना चाहिए!" इसके जवाब में उस नकाबपोश ने, जिसका कद बनिस्बत दूसरे के छोटा था, जवाब दिया, "धनपत को जो मर्द होकर औरत की सूरत में मायारानी के साथ रहता है, किसी से इनाम लेने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह स्वयं मालदार है, मगर मैं समझता हूँ कि कम्बख्त मायारानी भी लोगों को गिरफ्तार करने की नीयत से इसी जगह आकर कहीं छिपी होगी, उसे जल्द बुला, क्योंकि खास उसी को इनाम देने के लिए हम लोग यहाँ आये हैं।"
धनपत वास्तव में मर्द था, मगर यह हाल किसी को मालूम न था, इसलिए हम भी उसे अभी तक औरत ही लिखते चले आए मगर अब पूरी तरह से निश्चय हो गया कि वह मर्द है और हमारे पाठकों को भी यह बात मालूम हो गई इसलिए अब हम उसके लिए उन्हीं शब्दों का बर्ताव करेंगे, जो मर्दो के लिए उचित हैं।
उस आदमी की बात सुन कर धनपत परेशान हो गया, उसे यह फिक्र पैदा हुई कि अब हमारा भेद खुल गया और इसलिए जान बचना मुश्किल है। केवल धनपत ही नहीं बल्कि मायारानी और उन लौंडियों ने भी उस आदमी की बातें सुन ली जो उसी के आसपास पेड़ों के नीचे छिपी हुई थीं। मायारानी के दिल में भी तरह-तरह की बातें पैदा होने लगीं। उसने पहचानने की नीयत से उस नकाबपोश की आवाज पर ध्यान दिया, मगर कुछ काम न चला क्योंकि उसकी आवाज फंसी हुई थी और इस समय हर