भूमिका कहने की इच्छा होती है।
कमलिनी-बेशक ऐसा ही है। इस जगह 'तिनके की ओट पहाड़ वाली कहावत ठीक बैठती है। न मालूम वह कौन-सा भेद है जिसको जानने के लिए पहाड़ ऐसे पचासों दिन नष्ट करने की आवश्यकता होगी।
देवीसिंह-तो क्या आप भूतनाथ को अच्छी तरह नहीं जानती?
कमलिनी-मैं भूतनाथ के सात पुश्त को जानती हूँ जिसका परिचय आप लोगों को भी आपसे-आप मिल जायगा। निःसन्देह भूतनाथ दिल से हम लोगों का खैरख्वाह है परन्तु उसका दिल निरोग नहीं है और उसके भीतर का लंगर जो फौलाद की तरह ठोस है किसी चुम्बक की समीपता के कारण सीधी चाल नहीं चलता। मैं इस फिक्र में हूँ कि उसे हर तरह से स्वतन्त्र कर दूं मगर उसके दिल पर किसी जबरदस्त घटना के हादसे की लगी हुई मोहर उसके द्वारा कोई भेद प्रकट होने नहीं देती, निःसन्देह उस पर किसी अनुचित कार्य का काला धब्बा ऐसा मजबूत लगा है कि वह केवल आँसुओं के जल से धुलकर साफ नहीं हो सकता। हाय, एक दफे की चूक जन्म-भर के लिए बवाल हो जाती है। आप स्वयं चालाक हैं; यदि मेरी तरह खोज में लगे रहेंगे तो कुछ पता पा जायेंगे। वह बेशक हम लोगों का खैरख्वाह है, नमकहराम नहीं, मगर जिसका दिल इश्क का लवलेश न होने पर भी अपने अख्तियार में न हो उसका क्या विश्वास?
कमलिनी की इन भेद-भरी बातों ने केवल देवीसिंह ही को नहीं बल्कि किशोरी, कामिनी और तारा को भी हैरानी में डाल दिया जो असाध्य रोगियों की तरह जमीन पर पड़ी हुई थी और उनसे थोड़ी ही दूर पर बैठे हुए भैरोंसिंह ने भी कमलिनी की बातों को अच्छी तरह सुना और समझा, मगर जिस तरह देवीसिंह के दिल पर उन बातों ने असर किया उस तरह भैरोंसिंह के दिल पर उन बातों ने, मालूम होता है कोई असर नहीं किया क्योंकि भैरोंसिंह के चेहरे पर उन बातों को सुनने से आश्चर्य या उत्कण्ठा की कोई निशानी नहीं पाई जाती थी।
कुछ देर तक सोचने के बाद देवीसिंह यह कहकर उठ खड़े हुए, "अच्छा, मैं पहले घोडों की फिक्र में जाता हूँ, फिर जैसा होगा देखा जायगा।"
आधा घण्टा सफर करने के बाद देवीसिंह उस जगह पहुंचे जहाँ एक पेड़ के साथ दोनों घोडे बँधे हए थे। वहाँ से थोड़ी दूर पर एक चश्मा बह रहा था। देवीसिंह दोनों घोड़ों को वहाँ ले गये और पानी पिलाने के बाद लम्बी बागडोर के सहारे पेड़ों के साथ बांध दिया जहाँ उनके चरने के लिए लम्बी घास बहुतायत के साथ जमी हुई थी।
देवीसिंह ने सोचा कि यद्यपि कुसमय है मगर फिर भी वहाँ अवश्य चलना चाहिए जहाँ भगवानी को छोड़ आये थे, शायद भूतनाथ या श्यामसुन्दरसिंह से मुलाकात हो जाय, अगर किसी से मुलाकात हो गई तो कह देंगे कि आज प्रतिज्ञानुसार इस जगह कमलिनी से मुलाकात न होगी। अगर यह काम हो गया तो रात के समय पुनः बीमारों को छोड़ के इस तरफ आने की आवश्यकता न पड़ेगी।
इन बातों को सोचकर देवीसिंह वहाँ से आगे की तरफ बढ़े, मगर सौ कदम से ज्यादा दूर न गये होंगे कि सामने की तरफ से किसी के आने की आहट मालूम पड़ी।