बढ़ती जाती थी। भूतनाथ को साथ लिए हुए वह विचित्र मनुष्य पूरब की तरफ रवाना हो गया।
दिन बहुत ज्यादा चढ़ चुका था, जब कमलिनी अपना काम करके सुरंग की राह से लौटी और किशोरी, कामिनी तथा तारा को भैरोंसिंह के साथ बातचीत करते पाया। कमलिनी, लाड़िली और देवीसिंह बहुत प्रसन्न हुए और क्यों न होते, जिस आदमी की मेहनत ठिकाने लगती है उसकी खुशी का अन्दाजा करना उसी आदमी का काम है जो कठिन मेहनत करके किसी अमूल्य वस्तु का लाभ कर चुका हो। किशोरी, कामिनी और तारा को इस तरह पाना कम खुशी की बात न थी जिनके मिलने के किषय में आशा की भी आशा टूटी हुई थी।
किशोरी, कामिनी और तारा जमीन पर पड़ी बातें कर रही थीं क्योंकि उनमें उठने की सामर्थ्य बिल्कुल न थी, उन्होंने अपने बचाने वालों की तरफ―खास कर कमलिनी की तरफ―अहसान, शुक्रगुजारी और मुहब्बत-भरी निगाहों से देर तक देखा, जिसे कमलिनी तथा उसके साथी अच्छी तरह समझ कर प्रसन्न होते रहे। कमलिनी को इस बात की खुशी हद से ज्यादा थी कि किशोरी, कामिनी तथा तारा की जान बच गई।
कमलिनी, लाड़िली, देवीसिंह, और भैरोंसिंह इस बात पर विचार करने लगे कि अब क्या करना चाहिए। किशोरी, कामिनी और तारा में इतनी सामर्थ्य न थी कि दो कदम भी चल सकें या घोड़े पर सवार हो सकें और दो-तीन दिन के अन्दर इतनी ताकत हो भी नहीं सकती थी।
कमलिनी―अफसोस तो यह है कि दुश्मनों ने मेरे तिलिस्मी मकान की अवस्था बिल्कुल खराब कर दी और वह मकान अब इस योग्य न रहा कि उसमें चल कर डेरा डालें, बिछावन और बर्तन तक उठा के ले गये।
देवीसिंह―तालाब की अवस्था भी तो बिल्कुल खराब है। मिट्टी भर जाने के कारण वह स्थान अब निर्भय होकर रहने योग्य नहीं रहा और उसकी सफाई भी सहज में नहीं हो सकती।
कमलिनी―नहीं, इस बात की तो मुझे कुछ भी चिन्ता नहीं है क्योंकि दो दिन के अन्दर मैं उस तालाब को बिना परिश्रम साफ कर सकती हूँ और ऐसा करने के लिए किसी मजदूर की भी आवश्यकता नहीं है।
भैरोंसिंह–सो कैसे?
कमलिनी―उस मकान में एक विचित्र कुआँ है। यदि उसका मुँँह खोल दिया जाये, तो चश्मे की तरफ दो हाथ मोटी पानी की धारा उसमें से निकला करे और महीनों बन्द न हो, इसके अतिरिक्त तालाब में जल की निकासी के लिए भी एक लम्बी-चौड़ी