पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१७१

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नहीं सकती थी, और वह गठरी भी उसके पास इधर-उधर कहीं नहीं दिखाई देती थी जिसमें तारा की किस्मत बन्द थी और उस आदमी ने लड़ाई करते समय उसके हाथ में दे दी थी।

विचित्र मनुष्य ने झटपट उसके हाथ-पैर खोले, मुँँह पर से कपड़ा दूर किया और उसकी इस बेइज्जती का कारण पूछा। कुछ शान्त होने पर उसने कहा, “जिस समय तुम भूतनाथ से लड़ रहे थे, उसी समय एक नकाबपोश यहाँ आया था और उसने एक कपड़ा इस फुर्ती के साथ मेरे मुँँह पर डाल दिया और मुझे बेकाबू कर दिया कि मैं कुछ न कर सकी, न तो तुम्हें बुला सकी और न चिल्ला ही सकी। इसके बाद उसने मेरे मुँँह पर मजबूती से कपड़ा बाँँधा और फिर रस्सी से हाथ-पैर बाँँधने के बाद वह गठरी लेकर चला गया, जो तुमने मुझे दी थी और जो इस घबराहट में मेरे हाथ से छूट कर जमीन पर जा रही थी।”

आदमी―आह, तो मुझे अब मालूम हुआ कि वह शैतान नकाबपोश मेरा बहुत कुछ नुकसान करने के बाद मैदान में गया और मुझसे लड़ा था। हाय, उसने तो मुझे चौपट ही कर दिया, भूतनाथ पर काबू पाने का जो कुछ जरिया मेरे पास था, उसमें से बारह आता जाता रहा।

औरत―शायद ऐसा ही हो, क्योंकि मैं नहीं जानती कि किस नकाबपोश से तुम्हारी लड़ाई हुई और नतीजा क्या निकला?

आदमी―जो नकाबपोश मुझसे लड़ा था, वह अभी तक अखाड़े में बैठा हुआ है। जहाँ तक मुझे विश्वास होता है, मैं कह सकता हूँ कि उसी ने तुम्हें तकलीफ दी है। मगर अफसोस, लड़ाई का नतीजा अच्छा न निकला, क्योंकि वह मुझसे बहुत जबर्दस्त है।

औरत―(आश्चर्य से) क्या लड़ाई में उसने तुम्हें दबा लिया?

आदमी―बेशक ऐसा ही हुआ, और इस समय मैं उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता।

औरत―तो क्या वह भूतनाथ का पक्षपाती है?

आदमी―कहता तो वह यही है कि मैं तुम्हारे और भूतनाथ के बीच में कुछ भी न बोलूँँगा, तुम अगर चाहो तो भूतनाथ को ले जाओ या जैसा चाहो उसके साथ बर्ताव करो।

औरत―मगर, मेरे प्यारे मजनूँँ! तुम किसी बात की चिन्ता न करो, क्योंकि मैं उसे पहचान गई हूँ। इसलिए आज नहीं, तो फिर कभी जब तुम्हें मौका मिलेगा, तुम इस बेइज्जती का बदला ले सकोगे।

आदमी―(खुश होकर) तुमने उसे पहचान लिया? किस तरह पहचाना?

औरत―जब वह मेरे हाथ-पैर बाँध रहा था, उसी समय इत्तिफाक से उसके चेहरे पर से नकाब हट गया और मैंने उसे अच्छी तरह पहचान लिया।

आदमी―यह बहुत अच्छा हुआ, हाँ तो वह कौन है?

इसके जवाब में औरत ने धीरे-से उसके कान में कुछ कहा, जिसे सुनते ही वह चौंक पड़ा और सिर नीचा करके कुछ सोचने लगा। कई पल के बाद वह बोला,