पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१६८

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श्यामसुन्दरसिंह-वह क्या?

नकाबपोश—यह तो तुम देख ही चुके हो कि अद्भुत आदमी ने भूतनाथ को अपने कब्जे में कर लिया है।

श्यामसुन्दरसिंह-सो तो प्रकट ही है।

नकाबपोश-अब वह भूतनाथ को अपने साथ ले जायगा।

श्यामसुन्दरसिंह -अवश्य ले जायगा, इसी के लिए तो इतना बखेड़ा मचाये है।

नकाबपोश- उस समय मैं भी उसके साथ-साथ चला जाऊँगा।

श्यामसुन्दरसिंह-अच्छा तब?

नकाबपोश-तब रात को तुम अपने साथी नकाबपोश और भगवानी को लेकर उस समय इसी जगह आ जाना जिस समय कमलिनी ने तुमसे मिलने की प्रतिज्ञा की है और सब हाल ठीक-ठीक उससे कह देना और यह भी कह देना कि कल शाम को अपने तिलिस्मी मकान के पास मेरी बाट जोहे।

श्यामसुन्दरसिंह-अच्छा ऐसा करूँगा, मगर आप भी तो विचित्र आदमी मालूम पड़ते हैं।

नकाबपोश-जो हो, लो, अब मेरे साथ-साथ चले जाओ, मैं उसके मुकाबले में जाता हूँ।

नकाबपोश और श्यामसुन्दरसिंह की बातचीत बहुत जल्द ही हुई थी। इसमें आधी घड़ी से ज्यादा समय न लगा होगा बल्कि इससे भी कम लगा होगा। आखिरी बात कह कर नकाबपोश उस तरफ रवाना हुआ जहां भूतनाथ बैठा हुआ सोच रहा था कि अब क्या करना चाहिए! श्यामसुन्दरसिंह भी उसके पीछे-पीछे गया, मगर जाकर पेड़ों की आड़ में छिप कर खड़ा हो गया जहां से वह सब कुछ देख और सुन सकता था।

भूतनाथ अभी तक उसी तरह अपने विचार में निमग्न था और वह अद्भुत व्यक्ति उसकी तरफ बड़े गौर से देख रहा था। इसी बीच नकाबपोश भी उस जगह जा पहुँचा और उस चट्टान पर बैठ गया जिस पर गठरी रखी हुई थी।

पहले तो भूतनाथ ने समझा कि यह भी उसी विचित्र मनुष्य का साथी होगा। जिसने मुझे हर तरह से दबा रखा है। मगर जब उस आदमी को भी नकाबपोश के यकायक आ जाने से अपनी तरह आश्चर्य के भंवर में डूबे हुए देखा, तो उसे बड़ा ही ताज्जुब हुआ और वह बड़े गौर से उसी तरफ देखने लगा। इसके पहले कि भूतनाथ कुछ कहे उसका दुश्मन नकाबपोश की तरफ बढ़ गया और जरा कड़ी आवाज में उससे बोला, "तुम यहाँ क्यों आये हो और क्या चाहते हो?"

नकाबपोश-तुम्हें मेरे आने और चाहने से कोई मतलब नहीं, तुम लोग अपना काम करो।

यह जवाब कुछ ऐसी लापरवाही के साथ दिया गया था कि भूतनाथ और उसका वैरी दोनों ही दंग रह गये। आखिर उस आदमी ने भूतनाथ से कहा, "खैर, हमें इनसे कोई मतलब नहीं, तुम उठो और मेरे साथ चलो।"

नकाबपोश --(दिल्लगी के ढंग पर) न जाय तो गोद में उठा कर ले आओ!