श्यामसुन्दरसिंह-अगर रोके तो?
नकाबपोश—मैं छिप कर देखता रहूँगा, अगर वह तुम्हें रोकना चाहेगा तो मैं झट से पहुँच जाऊँगा, तब तक तुम गठरी उठा कर चल देना।
श्यामसुन्दरसिंह-अगर ऐसा ही है तो आप ही पहले वहाँ जाकर उससे लड़िये, बीच में मैं जाकर गठरी उठा लूँगा।
नकाबपोश-(हँस कर) मालूम होता है कि तुम्हें मेरी बातों पर विश्वास नहीं और तुम उस आदमी से बहुत डरते हो?
श्यामसुन्दरसिंह-बेशक ऐसा ही है क्योंकि मैं देख चुका हूँ कि भूतनाथ ऐसे जवांमर्द और बहादुर को उसने कैसा नीचा दिखाया और जहाँ तक मैं समझता हूँ, आप भी उसका मुकाबला नहीं कर सकते। मालूम होता है कि आपने उसकी लड़ाई नहीं देखी। अगर देखते तो लड़ने की हिम्मत न करते।
नकाबपोश-नहीं-नहीं, मैं उसकी लड़ाई देख चुका है और इसी से उसके साथ लड़ने की इच्छा होती है।
श्यामसुन्दरसिंह-अगर ऐसा है तो विलम्ब न कीजिये, जाकर उससे लड़ाई शुरू कर दीजिये, फिर मैं जाकर गठरी उठा लूंगा और चल दूंगा। मगर यह तो बताइये कि आप कौन हैं और कमलिनी के लिए इतनी तकलीफ क्यों उठा रहे हैं?
नकाबपोश—इसका जवाब मैं कुछ भी न दूंगा! (कुछ सोच कर) अच्छा, तो अब यह बताओ कि गठरी उठा लेने के बाद तुम कहाँ चले जाओगे?
श्यामसुन्दरसिंह-इसका जवाब मैं क्या दे सकता हूँ? जहाँ मौका मिलेगा चल दूंगा।
नकाबपोश-नहीं, ऐसा न करना। जहाँ तुम्हें जाना चाहिए, मैं बताता हूँ।
श्यामसुन्दसिंह-(चौंक कर) अच्छा बताइये!
नकाबपोश-तुम यहाँ से सीधे दक्खिन की तरफ चले जाना, थोड़ी दूर जाने के बाद एक पीपल का पेड़ दिखाई देगा, उसके नीचे पहुँच कर बाईं तरफ घूम जाना, एक पगडंडी मिलेगी, उसी को अपना रास्ता समझना। थोड़ी दूर जाने के बाद फिर एक पीपल का पेड़ दिखाई देगा, उसके नीचे चले जाना। वहाँ एक नकाबपोश बैठा हुआ दिखाई देगा और उसी के पास हाथ-पैर बँधी हुई हरामजादी भगवानी को भी देखोगे जो मौका पाकर यहां से भाग गई थी।
श्यामसुन्दर-(ताज्जुब में आकर) अच्छा फिर?
नकाबपोश-फिर तुम भी उसके पास जाकर बैठ जाना, जब मैं उस जगह आऊँगा तो देखा जायगा, या जैसा वह नकाबपोश कहेगा वैसा ही करना। डरना मत, उसे अपना दोस्त समझना। तुम देखते हो कि मैं जो कुछ कहता या करता हूँ, उसस तुम्हारे मालिक ही की भलाई हैं।
श्यामसुन्दरसिंह-मालूम तो ऐसा ही होता है।
नकाबपोश-मालूम होता है नहीं बल्कि यह कहो कि बेशक ऐसा है। अच्छा, अब तुम्हें एक बात और कहनी है।