पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१६६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
165
 


इन्हीं दो बातों को सोच कर श्यामसुन्दरसिंह जहाँ-का-तहां खड़ा रह गया और कुछ न कर सका।

श्यामसुन्दरसिंह छिपा हुआ इन सब बातों को सोच रहा था, भूतनाथ हताश होकर जमीन पर बैठ गया था और उसका बैरी आशा और प्रसन्नता की दृष्टि से उसे देख रहा था कि इसी बीच में एक आदमी ने श्यामसुन्दरसिंह के मोढ़े पर हाथ रखा।

श्यामसुन्दरसिंह चौंक पड़ा और उसने फिर कर देखा तो एक नकाबपोश पर निगाह पड़ी। जिसका कद नाटा तो न था मगर बहुत लम्बा भी न था। उसका चेहरा स्याह रंग के नकाब से ढंका हुआ था और उसके बदन का कपड़ा इतना चुस्त था कि बदन की मजबूती, गठन और मुडौली साफ मालूम होती थी। उसका कोई अंग ऐसा न था, जो कपड़े के अन्दर ढंका हुआ न हो। कमर में खंजर, तलवार और पीठ पर लटकती हई एक छोटी-सी ढाल के अतिखित वह हाथ में दो हाथ का डंडा भी लिए हुए था। हाँ, यह कहना तो हम भूल ही गये कि उसकी कमर में कमन्द और ऐयारी का बटुआ भी लटकता दिखाई दे रहा था।

श्यामसुन्दर सिंह ने बड़े गौर से उसकी तरफ देखा और कुछ बोलना ही चाहता था कि उसने चुप रहने और अपने पीछे-पीछे चले आना का इशारा किया। श्यामसुन्दरसिंह चप तो रह गया मगर उसके पीछे-पीछे जाने की हिम्मत न पड़ी। यह देख उस नकाबपोश ने धीरे-से कहा, "डरो मत, हमको अपना दोस्त समझो और चुपचाप चले आओ। देखो, देर मत करो, नहीं तो पछताओगे।" इतना कहकर नकाबपोश ने श्यामसन्दरसिंह की कलाई पकड़ ली और अपनी तरफ खींचा।

श्यामसुन्दरसिंह को ऐसा मालूम हुआ कि जैसे लोहे के हाथ ने कलाई पकड़ ली हो, जिसका छुड़ाना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव था। अब श्यामसुन्दरसिंह में इन्कार करने की हिम्मत न रही और वह चुपचाप उसके पीछे-पीछे चला गया। दस-बारह कदम से ज्यादा न गया होगा कि नकाबपोश रुका और उसने श्यामसुन्दरसिंह से कहा, "इतना देखने पर भी तुम कमलिनी के नमक की इज्जत करते हो या नहीं?"

श्यामसुन्दरसिंह–बेशक इज्जत करता हूँ।

नकाबपोश-अच्छा तो तुम उस मैदान में जाओ जहाँ भूतनाथ बैठा अपनी बदनसीबी पर विचार कर रहा है और उस गठरी को उठा लाओ जिसे भगवनिया चुरा लाई थी। तुम जानते हो कि उसमें लाखों रुपये का कीमती माल है। कहीं ऐसा न हो कि वैरी उसे उठा ले जायँ। ऐसा हुआ तो तुम्हारे मालिक का बहुत नुकसान होगा।

श्यामसुन्दरसिंह-ठीक है, मगर मैं डरता हूँ कि ऐसा करने से कहीं भूतनाथ रंज न हो जाय।

नकाबपोश-तुम्हें भूतनाथ के रंज होने का खयाल न करना चाहिए, बल्कि अपने मालिक के नफा-नुकसान को विचारना चाहिए। इसके सिवाय मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि भूतनाथ कुछ भी न कहेगा। हाँ, उसका बैरी कुछ बोले तो ताज्जुब नहीं मगर नहीं, जहाँ तक मैं समझता हूँ कि वह भी कुछ न बोलेगा, क्योंकि वह नहीं जानता कि उस गठरी में क्या चीज है।