पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१६२

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अपने साथ एक फौज लेकर आये हो!

आदमी–बेशक, ऐसा ही है। (दो कदम आगे बढ़कर और अपने हाथ की वह गठरी दिखाकर जिसमें कोई चीज लपेटी हुई थी) इसके अन्दर ऐसी चीज है, जिसका होना मेरे साथ वैसा ही है जैसा तुम्हारे साथ एक हजार बहादुर सिपाहियों का होना। क्या तुम नहीं जानते कि इसके अन्दर क्या चीज है? नहीं-नहीं, तुम बेशक समझ गये होगे कि इस कपड़े के अन्दर (कुछ रुककर) हाँ, ठीक है। पहला नाम चाहे कुछ भी हो, मगर अब हमको उसे 'तारा' ही कहकर बुलाना चाहिए-अच्छा तो हम क्या कह रहे थे? हां, याद आया, इस कपड़े के अन्दर तारा की किस्मत बन्द है। क्या तुम इसे खोलने के लिए हुक्म देते हो? मगर याद रखो कि खुलने के साथ ही इसमें से इतनी कड़ी आंच पैदा होगी कि जिसे देखते ही तुम भस्म हो जाओगे, चाहे वह आंच मेरे दिल को कितना ही ठण्डा क्यों न करे।

भूतनाथ—(कांपकर और दो कदम पीछे हटकर) ठहरो, जल्दी न करो, मैं हाथ जोड़ता हूँ, जरा सब्र करो!

आदमी-अच्छा क्या कहते हो, जल्दी कहो।

भूतनाथ—पहले यह बताओ कि आज ऐसे समय में तुम मेरे पास क्यों आये हो?

आदमी-(जोर से हंसकर) क्या बेवकूफ आदमी है! अबे तू इतना नहीं सोच सकता कि मैं उसी दिन से तुझे खोज रहा होऊँगा, जिस दिन तूने मुझ पर सफाई का हाथ फेरा था, मगर लाचार था कि तेरा पता ही नहीं लगता था! मैं नहीं जानता था कि भूतनाथ के चोले के अन्दर वही हरामी सूरत छिपी हुई है जिसे मैं वर्षों से ढूंढ़ रहा हूँ। अगर जानता तो कभी का तुझसे मिल चुका होता, इतने दिन मुफ्त में गंवाकर आज की नौबत न आई होती। अच्छा पूछो, और क्या पूछते हो!

भूतनाथ-(बहुत देर तक सोचने के बाद सिर नीचा करके) क्या मैं आशा कर सकता हूँ कि थोड़े दिन तक तुम मुझे और छोड़ दोगे? मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि इसके बाद स्वयं तुमसे मुलाकात करूंगा। उस समय तुम खुशी से मेरा सिर उतार लेना, मुझे कुछ भी रंज न होगा।

आदमी-सिर उतार लेना!

भूतनाथ–हां, मेरा सिर उतार लेना, मुझे कुछ भी दुःख न होगा।

आदमी-क्या सिर उतार लेने से बदला पूरा हो जायगा?

भूतनाथ-क्यों नहीं, क्या इससे भी बढ़ के कोई सजा है?

आदमी-मैं समझता हूँ कि यह कुछ भी सजा नहीं है! क्या तुम नहीं जानते कि प्रायः बुद्धिमान लोग जिन्हें नादान भी कह सकते हैं, जरा-सी बात पर अपनी जान अपने हाथ से बर्बाद कर देते हैं और अपनी बेइज्जती कराना नहीं चाहते तथा ऐसा करते समय उन्हें कुछ भी दुःख नहीं होता!

भूतनाथ—(कांपकर) तो क्या तुमने इससे भी कड़ी कोई सजा मेरे लिए सोच रक्खी है?

आदमी-बेशक! बदला उसी को कहते हैं जो उसके बराबर हो जिसका बदला