पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१४४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
143
 

भगवानी-(हाथ जोड़कर) नहीं-नहीं, आप मुझे व्यर्थ दोषी न ठहरायें, भला ऐसे मालिक के साथ मैं विश्वासघात करूँगी जो मुझे दिल से चाहे?

श्याम—(कमर से एक चिट्ठी निकालकर और भगवानी को दिखाकर) और यह क्या है? क्या इसमें भी लालन का नाम लिखा है? कोई हर्ज नहीं, अपने हाथ में लेकर अच्छी तरह देख ले क्योंकि यद्यपि यह रात का समय है, फिर भी चन्द्रदेव ने अपनी किरणों से दिन की तरह बना रक्खा है।

यह चिट्ठी न तीनों चिट्ठियों में एक थी जो शिवदत्त, माधवी और मनोरमा ने लिखकर भगवानी को दी थी। न मालूम श्यामसुन्दरसिंह के हाथ यह चिट्ठी कैसे लगी। भगवनिया इस चिट्ठी को देखते ही जदं पड़ गई, कलेजा धकधक करने लगा, मौत की भयानक सूरत सामने दिखाई देने लगी, गला रुक गया, वह कुछ भी जवाब न दे सकी। अब श्यामसुन्दरसिंह बर्दाश्त न कर सका, उसने एक तमाचा भगवानी के मुह पर जमाया और कहा-"कम्बख्त! अब बोलती क्यों नहीं!"

जब भगवानी ने इस बात का भी जवाब न दिया तब श्यामसुन्दरसिंह ने म्यान से तलवार निकाल ली और हाथ ऊँचा करके कहा, "अब भी अगर साफ-साफ भेद न बतावेगी तो मैं एक ही हाथ में दो टुकड़े कर दूँगा।"

भगवानी को निश्चय हो गया कि अब जान किसी तरह नहीं बच सकती, इसके अतिरिक्त डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई, और कुछ तो न कर सकी, हाँ एक दम जोर से चिल्ला उठी और इसके साथ ही एक तरफ से आवाज आई-"कौन है जो मर्द होकर एक स्त्री की जान लिया चाहता है?"

श्यामसुन्दरसिंह ने फिर कर देखा तो दाहिनी तरफ थोड़ी ही दूर पर एक नौजजवान को हाथ में खंजर लिए मौजूद पाया। उस नौजवान ने श्यामसुन्दरसिंह से पुनः कहा, "यह काम मर्दो का नहीं है जो तुम किया चाहते हो!" जिसके जवाब में श्यामसन्दरसिंह ने कहा, "बेशक यह काम मर्दो का नहीं मगर लाचार हूँ कि यह नमकहराम मेरी बातों का जवाब नहीं देती और मैं बिना जवाब पाये इसे किसी तरह नहीं छोड़ सकता।"

यह आदमी, जो श्यामसुन्दरसिंह के पास यकायक आ पहुँचा था, हमारा नामी प्यार भैरोंसिंह था जो कमलिनी के मकान के दुश्मनों से घिर जाने की खबर पाकर उसी तरफ जा रहा था और इत्तिफाक से यहाँ आ पहुँचा था, मगर वह श्यामसुन्दरसिंह और भगवनिया को नहीं पहचानता था और वे दोनों भी इसे सूरत बदले हुए और रात का समय होने के कारण न पहचान सके। भैरोंसिंह ने पुनः कहा--

भैरोंसिंह-यदि हर्ज न हो तो मुझे बताओ कि यह तुम्हारी किन बातों का जवाब नहीं देती?

श्याम–बता देने में हर्ज तो कोई नहीं अगर आप उन लोगों में से नहीं हैं जिन्हें हम लोग अपना दुश्मन समझते हैं, क्योंकि यह भेद की बात है और अपना भेद दुश्मनों के सामने प्रकट करना नीति के विरुद्ध है। उत्तम तो यह होगा कि हमारा भेद जानने के पहले आप अपना परिचय दें।