पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१३५

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तारा-क्या दुश्मन लोग सुरंग के उस मुहाने को सूना छोड़ देंगे जिसका पूरापूरा हाल उन लोगों को मालूम हो चुका है?

कामिनी-इसकी आशा भी नहीं हो सकती, वेशक भागना मुश्किल हो जायगा। खैर जो कुछ होगा देखा जायगा। इस समय तो मैं यही मुनासिब समझती हूँ कि तीर मार कर दुश्मनों की गिनती कम करनी चाहिए। वे लोग हम लोगों पर कोई हर्वा नहीं चला सकते।

तारा–हाँ, इस समय तो यही करना मुनासिब होगा इसके बाद जो राय होगी किया जायगा, मगर बहिन, मैं फिर भी कहती हूँ कि तुम मुझे तिलिस्मी नेजा हाथ में लेकर सुरंग की राह से निकल जाने दो, फिर देखो तो सही कि मैं अकेली इतने दुश्मनों को क्योंकर बात की बात में मार गिराती हूँ। तुम्हें इस नेजे का हाल पूरा-पूरा मालूम हो ही चुका है अतएव उस पर भरोसा करके तुम्हें उचित है कि मुझे न रोको, मैं नहीं चाहती कि यह तालाब पट जाय और फिर सफाई कराने के लिए तकलीफ उठानी पड़े।

कामिनी तुम्हारा कहना ठीक है, इस नेजे की जहाँ तक तारीफ की जाय कम है, और तुम उन सभी को जहन्नुम में पहुंचा सकोगी जो दुश्मनी की नीयत से तुम्हारे पास आयेंगे, मगर उनका तुम क्या बिगाड़ सकोगी जो दूर ही से तुम्हें तीर का निशाना बनावेंगे।

तारा-(कुछ सोचकर) बेशक, यह एक ऐसी बात तुमने कही जिस पर विचार करना चाहिए "अच्छा, खूब याद आया। इस मकान में फौलाद का एक ऐसा कवच है, जो बदन पर ठीक आ सकता है, मैं उसे पहनकर जाऊँगी और तीर की चोट से बेफिक्र रहूंगी। यद्यपि इस पर भी तुम कह सकती हो कि आँख, नाक, कान, मुँह इत्यादि किसकिस जगह की तुम हिफाजत कर सकती हो? मगर इसके साथ ही यह बात भी सोचना चाहिए कि अगर तालाब पाटकर दुश्मन यहाँ घुस आवेंगे और हम लोगों को पकड़ लेंगे तो क्या होगा? अपनी बेइज्जती कराना और बेहुर्मती के साथ जान देना अच्छा होगा या बहादुरी के साथ सौ-पचास को मारकर लड़ाई के मैदान में मिट जाना उचित होगा?

किशोरी–जब ऐसा ही है और तुम प्राण देने के लिए मुस्तैद होकर जाती ही हो तो हम दोनों को क्यों छोड़े जाती हो? क्या इसलिए कि तुम्हारे बाद हम लोगों की दुर्दशा और बेइज्जती हो?

इस विषय में किशोरी, कामिनी और तारा में देर तक हुज्जत और बहस होती रही, अन्त में यही निश्चय हुआ कि सूरत बदलने और कवच पहनने के बाद हाथ में तिलिस्मी नेजा लेकर तारा सुरंग की राह से जाय और दुश्मनों का मुकाबला करे, किशोरी और कामिनी दोनों में से एक या दोनों तारा के साथ सुरंग में जायें और जब तारा सुरंग के बाहर हो जाय तो हर एक दरवाजे को बन्द करती हुई लौट आवें। इसके बाद दुश्मनों के भाग जाने पर मकान में तारा का लौट आना कोई मुश्किल न होगा।

यह बात तै पाई गई और तीनों नौजवान औरतें जिनमें आपस में बहिनों से भी बढ़कर मुहब्बत हो गई थी, छत के नीचे उतर आई और एक कोठरी में चली गयीं। तारा ने ऐयारी के मसाले से अपने को रँगा और अपनी ऐसी भयानक सूरत बनाई कि