पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१३

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जाने के और कुछ भी नहीं कर सकते थे।

जो कुछ रात थी खड़े-खड़े बीत गई। सुबह की सुफेदी ने जिधर से रास्ता पाया मकान के अन्दर घुसकर उजाला कर दिया, जिससे कुंअर आनन्दसिंह को वहाँ की हर एक चीज साफ-साफ दिखाई देने लगी। यकायक पीछे की तरफ से दरवाजा खुलने की आवाज कुमार के कान में पड़ी। कुमार ने घूमकर देखा तो एक कोठरी का दरवाजा, जो इसके पहले बन्द था, खुला हुआ पाया। वे बेधड़क उसके अन्दर घुस गए और वहां ऊपर की तरफ गई हुई छोटी-छोटी खूबसूरत सीढ़ियाँ देखीं। धडधडाते हए दूसरी मंजिल पर चढ़ गए और हर तरफ गौर करके देखने लगे। इस मंजिल में बारह कोठरियाँ एक ही रंग-ढंग की देखने में आईं। हर एक कोठरी में दो दरवाजे थे। एक दरवाजा कोठरी के अन्दर घुसने के लिए और दूसरा अन्दर की तरफ से दूसरी कोठरी में जाने के लिए था। इस तरह पर किसी एक कोठरी के अन्दर घुसकर कुल कोठरियों में आदमी घूम आ सकता था। धीरे-धीरे अच्छी तरह उजाला हो गया और वहां की हर एक चीज बखूबी देखने का मौका कुमार को मिला। छोटे कुमार एक कोठरी के अन्दर घुसे और देखा कि वहां सिवाय एक चबूतरे के और कुछ भी नहीं है। यह चबूतरा स्याह पत्थर का बना हआ था और उसके ऊपर एक कमान और पाँच तीर रखे हए थे। कूमार ने तीर और कमान पर हाथ रखा, मालूम हुआ कि सब पत्थर का बना हआ है और किसी काम में आने योग्य नहीं है। दूसरे दरवाजे से दूसरी कोठरी में घुसे तो वहाँ एक लाश पड़ी देखी जिसका कटा हुआ सिर पास ही पड़ा हुआ था और वह लाश भी पत्थर ही की थी। उसे अच्छी तरह देखभाल कर तीसरी कोठरी में पहुँचे।

इसके चारों तरफ दीवार में कई खूटियाँ थीं और हर एक खंटी से एक-एक नंगी तलवार लटक रही थी। ये तलवारें नकली न थीं, बल्कि असली लोहे की थीं मगर हर एक पर जंग चढा हआ था। जब चौथा कोठरी में पहुंचे तो वहाँ चाँदी के सिंहासन पर बैठी हई एक मूरत दिखाई पड़ी। वह मूरत किसी प्रकार की धातु की बहुत ही खूबसूरत और ठीक-ठीक बनी हई थी, जिसे देखने के साथ ही कुमार ने पहचान लिया कि यह मायारानी की छोटी बहन लाडिला का मूरत है। कुमार मुहब्बत भरी निगाहें उस मूरत पर डालने लगे। निराली जगह अपन माशूक को देखने का उन्हें अच्छा मौका मिला, यदापि वर माशक असली नहीं, बल्कि कवल उसका एक छवि मात्र थी तथापि इस सबब से कि यहां पर कोई ऐसा आदमी न था जिसका लिहाज या खयाल होता, उन्हें एक निराले ढंग की खुशी हुई और वे देर तक उसक हर एक अंग की खूबसूरती को देखते रहे। इसी बीच बगल वाली कोठरी में से यकायक एक, एक खटके की आवाज आई। कुमार चौंकपड़े और यह सोचते हुए उस कोठारी का तरफ बढ़े कि शायद वर आदमी उसमें मिले जिसके पीछे-पीछे इस मकान के अन्दर आए हैं, मगर इस कोठरी में भी किसी की सूरत दिखाई न दी।

इस कोठरी में, जिसमें कुमार पहुँचे हैं, चाँदी का का केवल एक सन्दूक था, जिसके बीच में हाथ डालने के लायक एक छेद भी बना हुआ था हुआ था और छेद के ऊपर सुनहले हर्को में यह लिखा हुआ था--