पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१२५

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जल कम होते जाने के कारण धीरे-धीरे उसके ऊपर निकलते चले आ रहे थे। इन्हीं जालियों और फन्दों के कारण कोई आदमी उस तालाब में घुसकर अपनी जान नहीं बचा सकता था और इनका खुलासा हाल हम पहले लिख चुके हैं।

तारा ने जव तालाब का जल घटते और जालों को जल के बाहर निकलते देखा तो उसकी बची-बचाई आशा भी जाती रही, मगर उसने अपने दिल को सम्हाल कर इस आने वाली आफत से किशोरी और कामिनी को होशियार कर देना उचित जाना। उस ने किशोरी और कामिनी की तरफ देखकर कहा-"बहिन, अब मुझे एक आफत का हाल तो मालूम हो गया जो हम लोगों पर आना चाहती है। (उन फौजी आदमियों की तरफ इशारा करके, जो दूर से इसी तरफ आते हुए दिखाई दे रहे थे) वे लोग हमारे दुश्मन जान पड़ते हैं जो शीघ्र ही यहाँ आकर हम लोगों को गिरफ्तार कर लेंगे। मुझे पूरा-पूरा भरोसा था कि इस तालाब में तैर कर या घरनाई अथवा डोंगी के सहारे कोई इस मकान तक नहीं आ सकता क्योंकि जल के अन्दर लोहे के जाल इस ढंग से बिछे हुए हैं कि इसमें तैरने वाली चीज बिना फंसे और उलझे नहीं रह सकती, मगर वह बात भी जाती रही। देखो तालाब का जल कितनी तेजी के साथ घट रहा है, और जब सब जल निकल जायगा तो इस बीच वाले जाल को तोड़ या बिगाड़ कर यहाँ तक चले आने में कुछ भी कठिनता न रहेगी। मालूम होता है कि दुश्मनों ने इसका बन्दोबस्त पहले ही से कर रक्खा था अर्थात् सुरंग खोदकर जल निकालने और तालाब सुखाने का बन्दोबस्त किया गया है और निःसन्देह वे अपने काम में कृतकार्य हुए। (कुछ सोचकर) बड़ी कठिनाई हुई। (आसमान की तरफ देख के) माँ जगदम्बे, सिवाय तेरे हम अबलाओं की रक्षा करने वाला कोई भी नहीं, और तेरी शरण आए हुए को दुःख देने वाला भी जगत में कोई नहीं। मैं इतना दुःख भोग कर आज तक केवल तेरे ही भरोसे जी रही हूं और जब इस की प्रसन्नता हुई कि आज तक तेरा ध्यान धर के जान बचाये रहना वृथा न हुआ तो अब यह बात? यह क्या? क्यों? किसके साथ? क्या उसके साथ जो तुम पर भरोसा रक्खें? नहीं-नहीं, इसमें भी आवश्य तेरी कुछ माया है!"

भगवती की प्रार्थना करते-करते तारा की आँखें बन्द हो गईं। मगर इसके बाद तुरन्त ही वह चौंकी तथा किशोरी और कामिनी की तरफ देख के बोली, "निःसन्देह महामाया हम अबलाओं की रक्षा करेंगी। हमें हताश न होना चाहिए, उन्हीं की कृपा से इस समय जो कुछ करना चाहिए वह भी सूझ गया। शुक्र है कि इस समय दो एक को छोड़ कर बाकी सब आदमी मेरे घर के अन्दर ही हैं। अच्छा देखो तो सही कि मैं क्या करती हूँ।" यह कहती हुई तारा छत के नीचे उतर गई।

हमारे पाठकों को याद होगा कि यह मकान किस ढंग का बना हुआ था। वे भूले न होंगे कि इस मकान के चारों तरफ जो छोटा-सा सहन है, उसके चारों कोनों में चार पुतलियाँ हाथों में तीर-कमान लिए इस ढंग से खड़ी हैं मानो अभी तीर छोड़ा ही चाहती हैं। इस समय बेचारी तारा छत पर से उतर कर उन्हीं पुतलियों में से एक पुतली के पास आई। उसने इस पुतली का सिर पकड़ कर पीठ की तरफ झुकाया और पुतली बिना परिश्रम झुकती चली गई यहाँ तक कि जमीन के साथ लग गई। इस समय