पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१२२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
121
 


दारोगा-मुझे ठीक-ठीक पता लग चुका है कि भूतनाथ ने 'रूहा' बनकर शिवदत्त को धोखा दिया और अब शिवदत्त कमलिनी के तालाब वाले मकान में कैद है, माधवी और मनोरमा भी उसी मकान में कैद हैं।

मायारानी-उस मकान में से उन लोगों को छुड़ाना जरा मुश्किल है, वह भी ऐसे समय में जब कि हमारे पास कोई ऐयार नहीं।

दारोगा-(यकायक कोई बाद याद आने से चौंककर) हाँ, मैं यह पूछना तो भूल ही गया कि तुम्हारे ऐयार बिहारीसिंह और हरनामसिंह कहाँ हैं? मालूम होता है कि तुम्हारी इस अवस्था का हाल उन लोगों को मालूम नहीं है। मगर नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। जमानिया में इतना फसाद मच जाना और तुम्हारा निकल भांगना कोई साधारण बात नहीं है, जिसकी खबर तुम्हारे ऐयारों को न होती। शायद इसका कोई और सबब हो

अब मायारानी इस सोच में पड़ गई कि दारोगा की बातों का क्या जवाब दिया जाय। उसने और सब हाल तो दारोगा से कह दिया था, मगर उन दोनों ऐयारों की जान लेने का हाल अब तक नहीं कहा था। उसने सोचा कि यदि दारोगा को यह मालूम हो जायगा कि मैंने दोनों ऐयारों को मार डाला तो उसे बड़ा ही रंज होगा, क्योंकि ऐयारों का मारना बहुत बुरा होता है। तिस पर अपने खास ऐयारों की जान लेना और सो भी बिना कसूर! लेकिन फिर क्या कहा जाय? क्या उनके मारने का हाल ठीक-ठीक न कहकर कुछ बहाना कर देना उचित होगा? नहीं, बहाना करने और छिपा जाने से काम नहीं चलेगा, अन्त में यह बात प्रकट हो ही जायगी, क्योंकि लीला को यह बात मालूम हो चुकी है और कम्बख्त लीला भी इस समय मेरा साथ छोड़ कर अलग हो गई है। इसलिए आश्चर्य नहीं कि वह मेरा भंडा फोड़ दे और सभी के साथ बाबाजी को भी उन बातों का पता लग जाय। मगर नहीं, उस समय जो होगा देखा जायगा, अभी तो छिपाना ही उचित है।

मायारानी सिर झुकाये हुए इन बातों को सोच रही थी और दारोगा इस आश्चर्य में था कि मायारानी ने मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दिया या यह क्या सोच रही है। आखिर दारोगा चुपचाप रह न सका और उसने पुनः मायारानी से कहा--

दारोगा-तुम क्या सोच रही हो, मेरी बात का जवाब क्यों नहीं देती?

मायारानी—मैं यही सोच रही हूँ कि आपकी बात का क्या जवाब दूँ जब कि मैं स्वयं नहीं जानती कि मेरे ऐयारों ने ऐसे समय में मेरा साथ क्यों छोड़ दिया और कहाँ चले गये!

दारोगा-अस्तु, मालूम हुआ कि उन दोनों ने स्वयं तुम्हारा साथ छोड़ दिया।

मायारानी-बेशक, ऐसा ही कहना चाहिए। अच्छा अब विशेष समय नष्ट न करना चाहिए। अब आप जल्दी यह सोचिए कि हम कहाँ जाकर ठहरें और क्या करें!

दारोगा-अब जहाँ तक मैं समझता हूँ, यही उचित जान पड़ता है कि शेरअलीखां के पास चलें और उससे मदद लें। यह तो सब कोई जानते हैं कि शेरअलीखाँ बड़ा जबर्दस्त लड़ाका है, मगर उसके पास दौलत नहीं है।