पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/११६

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ने (जिनके आप शिष्य हैं) आपको अच्छी दीक्षा और शिक्षा दी होगी। उन्हें यह मालूम न था कि आप इतने बड़े विश्वासघाती हैं! हाय उनके साथ आपका ऐसा बर्ताव! छि:छिः, धिक्कार है ऐसी जिन्दगी पर! किसके लिए? किस दुनिया में मुँह दिखाने के लिए? क्या आप नहीं जानते कि ईश्वर भी कोई वस्तु है! खैर जाइये, इस समय मैं विशेष बात नहीं कर सकता। आप यह न समझिये कि मैं अपने घर में से चले जाने के लिए आपसे कहता हूँ बल्कि यह कहता हूँ कि अपने कमरे में जाकर आराम कीजिये। आपको चार दिन की मोहलत दी जाती है इस बीच में अच्छी तरह सोच लीजिये कि किस तरह से आपकी भलाई हो सकती है और आपको किस रास्ते पर चलना उचित है, मगर खबरदार, इस समय जो कुछ बातें हुई हैं, उनका जिक्र मायारानी से न कीजिएगा और इस चार दिन के अन्दर मुझसे मिलने की भी आशा न रखिएगा।


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दारोगा जिस समय इन्द्रदेव के सामने से उठा तो बिना इधर-उधर देखे सीधा अपने कमरे में चला गया और चादर से मुँह ढांप कर पलंग पर सो रहा। घण्टे भर रात गई होगी जब मायारानी यह पूछने के लिए कि इन्द्रदेव ने आपको क्यों बुलाया था बाबाजी के कमरे में आई, मगर जब बाबाजी को चादर से मुँह छिपाए पड़े देखा तो उसे आश्चर्य हुआ। वह उनके पास गई और चादर हटा कर देखा तो बाबाजी को जागते पाया। इस समय बाबाजी का चेहरा जर्द हो रहा था और ऐसा मालूम पड़ता था कि उनके शरीर में खून का नाम भी नहीं है या महीनों से बीमार हैं।

बाबाजी की ऐसी अवस्था देख कर मायारानी सन्न हो गई और बाबाजी का मुँह देखने लगी।

दारोगा--इस समय जाओ सो रहो, मेरी तबीयत ठीक नहीं है।

मायारानी-मैं केवल इतना ही पूछने के लिए आई थी कि इन्द्रदेव ने आपको क्यों बुलाया था और क्या कहा?

दारोगा कुछ नहीं, उसने केवल धीरज दिया और कहा कि चार-पांच दिन ठहरो मैं तुम लोगों का बन्दोबस्त कर देता हूँ। तब तक नागर भी गिरफ्तार होकर आ जाती है, लोग उसे पकड़ने के लिए गये हैं।

मायारानी-मगर आपकी अवस्था तो कुछ और कह रही है।

दारोगा-बस, इस समय और कुछ न पूछो। मैं अभी कह चुका हूँ कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, मैं इस समय बात भी मुश्किल से कर सकता हूँ।

मायारानी और कुछ भी न पूछ सकी, उलटे पैर कर अपने कमरे में चली गई और पलंग पर लेट के सोचने-विचारने लगी, मगर थकावट, माँदगी और चिन्ता ने उसे अधिक देर तक चैतन्य न रहने दिया और शीघ्र ही वह नींद की गोद में जाकर खर्राटे लेने लगी।