फैलेगी। (चौंक कर) राम-राम, मुझे क्या हो गया जो...
भूतनाथ––(उस औरत की तरफ देख के) अच्छा मैं कमलिनी को मारने के लिए तैयार हूँ, मगर इसके बदले में मुझे इनाम क्या मिलेगा?
औरत––(हँस कर) तू इस लायक नहीं है कि तुझे इनाम दिया जाये।
भूत––क्या मैं इस दर्जे को पहुँच गया?
औरत––बेशक।
भूत––नहीं, कभी नहीं! जा, मैं तेरा हुक्म नहीं मानता। देखूँ तू मेरा क्या कर लेती है!
औरत––भूतनाथ, देख खूब सोचकर कोई बात मुँह से निकाल, ऐसा न हो कि अन्त में पछताना पड़े।
भूत––जा जा, जो करते बने कर ले।
भूतनाथ की आखिरी बात सुनकर वह औरत क्रोध में आकर काँपने लगी। उसके होंठ काँप रहे थे मगर कुछ कहना मुश्किल हो रहा था।
इस समय चारों तरफ अँधेरा छा चुका था अर्थात् रात बखूबी हो चुकी थी। थोड़ी देर के लिए दोनों आदमी चुप हो गये, यकायक घोड़ों की टापों की आवाज (जो बहुत दूर से आ रही थी) भूतनाथ के कान में पड़ी और साथ ही इसके वह औरत भी बोल उठी, "अच्छा देख, मैं तेरी ढिठाई का कैसा मजा चखाती हूँ।"
भूतनाथ पहले तो कुछ घबड़ाया मगर उसने तुरन्त ही अपने को सँभाला और कमर से खंजर निकाल कर उस औरत के सामने खड़ा हो गया। वह खंजर वही था जो कमलिनी ने उसे दिया था। कब्जा दबाते ही खंजर में से बिजली की चमक पैदा हुई जिसके सबब से उस औरत की आँखें बन्द हो गई और वह बावली-सी हो गई तथा उस समय तो उसे तन-बदन की सुध भी न रही जब भूतनाथ ने खंजर उसके बदन से छुआ दिया।
भूतनाथ ने बड़ी होशियारी से उस बेहोश औरत को उसके घोड़े पर लादा और आप भी उसी पर सवार हो तेजी के साथ मैदान का रास्ता लिया। थोड़ी दूर जाकर भूतनाथ ने बेहोशी की तेज दवा उसे सुँघाई, जिससे वह औरत बहुत देर के लिए मुर्दे की-सी हो गई। हमको इससे कोई मतलब नहीं कि वे सवार जिनके घोड़ों के टापों की आवाज भूतनाथ के कान में पड़ी थी कौन थे और उन्होंने वहाँ पहुँच कर क्या किया जहाँ से भूतनाथ उस औरत को ले भागा था, हम केवल भूतनाथ के साथ चलते हैं, जिसमें उस औरत का और भूतनाथ का हाल मालूम हो।
यद्यपि रात अँधेरी और रास्ता पथरीला था तथापि भूतनाथ ने चलने में कसर न की। थोड़ी-थोड़ी दूर पर घोड़ा ठोकर खाता था जिससे भूतनाथ को तकलीफ होती थी और वह बड़ी मुश्किल से उस बेहोश औरत को सँभाले लिए जाता था मगर यह तकलीफ ज्यादा देर के लिए न थी क्योंकि पहर भर के बाद ही आसमान पर कुदरती माहताबी जलने लगी और उसकी (चन्द्रमा की) रोशनी ने चारों तरफ ठंडक और खूबसूरती के साथ उजाला कर दिया। ऐसी अवस्था में भूतनाथ ने रुकना उचित न समझा