पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/८६

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नानक ने खींचकर बाहर निकाला।

कमलिनी ने एक खटका दबाकर सन्दूक खोला। इसके अन्दर चार खंजर, एक नेजा और पाँच अंगूठियाँ थीं। कमलिनी ने पहले एक अँगूठी निकाली और अपनी अंगुली में उसे पहिन लिया, इसके बाद एक खंजर निकाला और उसे भी म्यान से बाहर कर तारा, भूतनाथ और नानक को दिखाकर बोली, "देखो इस खंजर का लोहा कितना उम्दा है।"

भूतनाथ––वेशक बहुत उम्दा लोहा है।

कमलिनी––अब इसके गुण सुनो। यह खंजर जिस चीज पर पड़ेगा उसे दो टुकड़े कर देगा चाहे वह चीज लोहा, पत्थर, अष्टधातु या फौलादी हर्बा क्यों न हो। इसके अतिरिक्त जब इसका कब्जा दबाओगे तो इसमें बिजली की तरह चमक पैदा होगी, उस समय यदि सौ आदमी भी तुम्हें घेरे हुए खड़े होंगे तो चमक से सभी की आँखें बन्द हो जायंगी। यद्यपि इस समय दिन है और किसी तरह की चमक सूर्य का मुकाबला नहीं कर सकती, तथापि इसका मजा मैं तुम्हें दिखाती हूँ।

इतना कह कर कमलिनी ने खंजर का कब्जा दबाया। यकायक इतनी ज्यादा चमक उसमें से पैदा हुई कि दिन का समय होने पर भी उन तीनों की आँखें बन्द हो गईं। मालूम हुआ कि एक बिजली सी आँख के सामने चमक गई।

कमलिनी––सिवाय इसके इस खंजर को जो कोई छूएगा या जिसके बदन से यह खंजर छुआ दोगे उसके खून में एक प्रकार की विजली दौड़ जायगी और वह तुरंत बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ेगा। लो, इसे तुम लोग छूकर देखो, यही अद्भुत खंजर मैं तुम लोगों को दूँगी।

कमलिनी ने खंजर भूतनाथ के आगे रख दिया। भूतनाथ ने उसे उठाना चाहा मगर हाथ लगाने के साथ ही वह काँपा और बदहवास होकर जमीन पर गिर पड़ा। कमलिनी ने अपना दूसरा हाथ, जिसमें अंगूठी थी, उसके बदन पर फेरा तब उसे होश आया।

भूतनाथ––चीज तो बहुत अच्छी है मगर इसका छूना गजब है।

कमलिनी––(सन्दूक में से कई अंगूठियाँ निकाल कर) पहले इन अंगूठियों को तुम लोग पहिनो तब इस खंजर को हाथ में ले सकोगे और तभी इसकी तेज चमक भी तुम्हारी आँखों पर अपना पूरा असर न कर सकेगी अर्थात् जो कोई मुकाबले में या तुम्हारे चारों तरफ होगा उसकी आँखें तो बन्द हो जायेंगी, मगर तुम्हारी आँखें खुली रहेंगी और तुम दुश्मनों को बखूबी मार सकोगे।

इतना कह कर कमलिनी ने एक-एक अँगूठी तीनों को पहिना दी और इसके बाद एक-एक खंजर तीनों के हवाले किया। तारा, भूतनाथ और नानक ऐसा अद्भुत खंजर पाकर हद से ज्यादा खुश हुए और घड़ी-घड़ी उसका कब्जा दबाकर उसकी चमक का मजा लेते रहे।

कमलिनी––अव एक खंजर और एक अँगूठी बच गई सो कुँअर इन्द्रजीतसिंह के लिए अपने पास रक्खूँगी। जिस समय उनसे मुलाकात होगी उनके हवाले करूँगी, और यह अँगूठी जो मेरी उँगली में है और यह नेजा, जो अपने वास्ते लाई हूँ, इसमें भी वही