पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/८२

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"बस, जहाँ तक जल्द हो सके तुम दोनों आदमी इस तहखाने से बाहर निकल जाओ, नहीं तो व्यर्थ तुम दोनों की जान चली जायेगी। अगर बचे रहोगे तो दोनों कुमारों को छुड़ाने का उद्योग करोगे और पता लगा ही लोगे। मैं वही बिजली की तरह चमकने वाला नेजा हाथ में रखने वाली औरत हूँ, पर लाचार, इस समय मैं किसी तरह तुम्हारी मदद नहीं कर सकती। अब तुम लोग बहुत जल्द रोहतासगढ़ चले जाओ, उसी जगह आकर मैं तुममें मिलूँगी और सब हाल खुलासा कहूँगी। अब मैं जाती हूँ क्योंकि इस समय मुझे भी अपनी जान की पड़ी है।"

इस बात को सुन कर दोनों आदमी ताज्जुब में आ गए और कुछ देर तक सोचने के बाद तहखाने के बाहर निकल आए।

डबडबाई आँखों के साथ उसांसें लेते हुए राजा वीरेन्द्रसिंह रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए। कैदियों और अपने कुल आदमियों को साथ लेते गए, मगर तेजसिंह ने न मालूम क्या कह-सुन कर और क्यों छुट्टी ले ली और राजा वीरेन्द्रसिंह के साथ रोहतासगढ़ न गये।

राजा वीरेन्द्रसिंह रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए और तेजसिंह ने दक्खिन का रास्ता लिया। इस वारदात को कई महीने गुजर गये और इस बीच में कोई बात ऐसी नहीं हुई जो लिखने योग्य हो।


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अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फँसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़ कर अन्दर की तरफ झाँकने के बाद हँसते-हँसते उस मकान में कूद पड़े थे। हम लिख आये हैं कि जब वे लोग मकान के अन्दर कूद गए तो न मालूम क्या समझ कर कमलिनी हँसी और अपनी ऐयारा तारा को साथ ले वहाँ से रवाना हो गई।

तारा को साथ लिए और बातें करती हुई कमलिनी दक्खिन की तरफ रवाना हुई जिधर का जंगल घना और सुहावना था। लगभग दो कोस चले जाने के बाद जंगब बहुत ही रमणीक मिला, बल्कि यों कहना चाहिए कि जैसे-जैसे वे दोनों बढ़ती जाती थीं, जंगल सुहावना और खुशबूदार जंगली फूलों की महक से बसा हुआ मिलता था। यहाँ तक कि दोनों एक ऐसे सुन्दर चश्मे के किनारे पहुँची जिसका जल बिल्लौर की तरह साफ था और जिसके दोनों किनारों पर दूर-दूर तक मौलसिरी के पेड़ लगे हुए थे। इस चश्मे का पाट दस हाथ का होगा और गहराई दो हाथ से ज्यादा न होगी। यहां की जमीन पथरीली और पहाड़ी थी।

अब ये दोनों उस चश्मे के किनारे-किनारे चलने लगीं। ज्यों-ज्यों आगे जाती थीं, जमीन ऊँची मिलती जाती थी, जिससे समझ लेना चाहिए कि यह मुकाम किसी