पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/८१

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था। वह सोचता था कि देखें कुँअर इन्द्रजीतसिंह, भैरोंसिंह और कामिनी को किस अवस्था में पाते हैं। ताज्जुब नहीं कि हमारे पाठकों की भी इस समय वही अवस्था हो और वे भी इसी सोच-विचार में हों, मगर वहाँ तहखाने में तो मामला ही दूसरे ढंग का था।

तहखाने में उतर जाने के बाद राजा वीरेन्द्रसिंह, आनन्दसिंह और ऐयारों ने चारों तरफ देखना शुरू किया मगर कोई आदमी दिखाई न पड़ा और न कोई ऐसी चीज नजर पड़ी जिससे उन लोगों का पता लगता, जिनकी खोज में वे लोग तहखाने के अन्दर गए थे। न तो वह सन्दूक था जिसमें इन्द्रजीतसिंह की लाश थी और न भैरोंसिंह, कामिनी या उस सिपाही की सूरत नजर आई, जो उस संदूक के साथ तहखाने में आया था, जिसमें कुँअर इन्द्रजीतसिंह की लाश थी।

वीरेन्द्रसिंह (तारासिंह की तरफ देख कर) यहाँ तो कोई भी नहीं है! क्या तुमने उन लोगों को किसी दूसरे तहखाने में छोड़ा था?

तारासिंह––जी नहीं, मैंने उन सभी को इसी जगह छोड़ा। (हाथ से इशारा करके) इसी कोठरी में कामिनी ने अपने को बन्द कर रखा था!

वीरेन्द्रसिंह––कोठरी का दरवाजा खुला हुआ है, उसके अन्दर जाकर देखो तो शायद कोई हो।

कमला ने कोठरी का दरवाजा खोला और झाँककर देखा इसके बाद कोठरी के अन्दर घुस कर उसने आनन्दसिंह और तारासिंह को पुकारा और उन दोनों ने भी कोठरी के अन्दर पैर रखा।

कमला, तारासिंह और आनन्दसिंह को कोठरी के अन्दर घुसे आधी घड़ी से ज्यादा गुजर गई, मगर उन तीनों में से एक भी बाहर न निकला। आखिर तेजसिंह ने पुकारा परन्तु जवाब न मिलने पर लाचार हो हाथ में मशाल लेकर तेजसिंह खुद कोठरी के अन्दर गए और इधर-उधर ढूँढ़ने लगे।

वह कोठरी बहुत छोटी और संगीन थी। चारों तरफ पत्थर की दीवारों पर खूब ध्यान देने से कोई खिड़की या दरवाजे का निशान नहीं पाया जाता था, हाँ ऊपर की तरफ एक छोटा-सा छेद दीवार में था मगर वह भी इतना छोटा था कि आदमी का सिर किसी तरह उसके अन्दर नहीं जा सकता था और दीवार में कोई ऐसी रुकावट भी न थी जिस पर चढ़ कर या पैर रख कर कोई आदमी अपना हाथ उस मोखे (छेद) तक पहुँचा सके। ऐसी कोठरी में से यकायक कमला, तारासिंह और आनन्दसिंह का गायब हो जाना बड़े ही आश्चर्य की बात थी। तेजसिंह ने इसका सबब बहुत कुछ सोचा मगर अक्ल ने कुछ मदद न थी। वीरेन्द्रसिंह भी कोठरी के अन्दर गये और तलवार के कब्जे से हर एक दीवार को ठोंक-ठोंक कर देखने लगे जिसमें मालूम हो जाय कि किसी जगह से दीवार पोली तो नहीं है मगर इससे भी कोई काम न चला। थोड़ी देर तक दोनों आदमी हैरान हो चारों तरफ देखते रहे। आखिर किसी आवाज ने उन्हें चौकन्ना दोनों ध्यान देकर उस छेद की तरफ देखने लगे जो उस कोठरी के अन्दर ऊँची दीवार में था और जिसमें से आवाज आ रही थी। वह आवाज यह थी––