इशारा करके शिवदत्त से कहा, "बस अब हम लोग ठिकाने पर आ पहुँचे, यही मकान है।"
शिवदत्त के साथी सवारों ने उस मकान को चारों तरफ से घेर लिया।
रूहा––इस मकान में कुछ खजाना भी है जिसका हाल मुझे अच्छी तरह मालूम है।
शिवदत्त––(खुश होकर) आजकल मुझे रुपये की जरूरत भी है।
रूहा––मैं चाहता हूँ कि पहले केवल आपको इस मकान में ले चलकर दो एक जगह निशान और वहाँ का कुछ भेद बता दूँ फिर आगे जैसा मुनासिब होगा वैसा किया जायगा। आप मेरे साथ अकेले चलने के लिए तैयार हैं, डरते तो नहीं?
शिवदत्त––(घमंड के साथ) क्या तुमने मुझे डरपोक समझ लिया है? और फिर ऐसी अवस्था में जब कि हमारे पाँच सौ सवारों से यह मकान घिरा हुआ है?
रूहा––(हँसकर) नहीं-नहीं, मैंने इसलिए टोका कि शायद इस पुराने मकान में आपको भूत-प्रेत का गुमान पैदा हो।
शिवदत्त––छि:, मैं ऐसे खयाल का आदमी नहीं हूँ, बस देर न कीजिये, चलिये।
रूहा ने पथरी से आग झाड़ कर मोमबत्ती जलाई जो उसके पास थी और शिवदत्त को साथ लेकर मकान के अन्दर घुसा। इस समय उस मकान की अवस्था बिल्कुल खराब थी, केवल तीन कोठरियाँ बची हुई थीं जिनकी तरफ इशारा करके रूहा ने शिवदत्त से कहा, यद्यपि यह मकान बिल्कुल टूट-फूट गया है मगर इन तीनों कोठरियों को अभी तक किसी तरह का सदमा नहीं पहुँचा है, मुझे केवल इन्हीं कोठरियों से मतलब है। इस मकान की मजबूत दीवारें अभी दो-तीन और बरसातें सम्हालने की हिम्मत रखती हैं।
शिवदत्त––मैं देखता हूँ कि वे तीनों कोठरियाँ एक के साथ एक सटी हुई हैं और इसका भी कोई सबब जरूर होगा।
रूहा––जी हाँ, मगर इन तीन कोठरियों से इस समय तीन काम निकलेंगे।
इसके बाद रूहा एक कोठरी के अन्दर घुसा। इसमें एक तहखाना था और नीचे उतरने के लिए सीढ़ियाँ नजर आती थीं। शिवदत्त ने पूछा, "मालूम होता है इसी सुरंग की राह आप मुझे ले चलेंगे?" इसके जवाब में रूहा ने कहा, "हाँ इन्द्रजीतसिंह को गिरफ्तार करने के लिए इसी सुरंग में चलना होगा, मगर अभी नहीं, मैं पहले आपको दूसरी कोठरी में ले चलता हूँ जिसमें खजाना है, मेरी तो यही राय है कि पहले खजाना निकाल लेना चाहिए, आपकी क्या राय है?"
शिवदत्त––(खुश होकर) हाँ-हाँ, पहले खजाना अपने कब्जे में लेना चाहिए। कहिये, तो कुछ आदमियों को अन्दर बुलाऊँ?
रूहा––अभी नहीं, पहले आप स्वयं चल कर उस खजाने को देख तो लीजिए।
शिवदत्त––अच्छा चलिये।
अब ये दोनों दूसरी कोठरी में पहुँचे। इसमें भी एक वैसा ही तहखाना नजर आया जिसमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ मौजूद थीं। शिवदत्त को साथ लिए हुए रूहा उस