रूहा––(मुस्कुरा कर) इस बन्दोबस्त से आप वीरेन्द्रसिंह का कुछ भी नहीं कर सकते।
शिवदत्त––सो क्यों?
रूहा––क्या आप इस बात को नहीं जानते कि इस खँडहर की दीवार बड़ी मजबूत है?
शिवदत्त––बेशक मजबूत है मगर इससे क्या हो सकता है?
रूहा––क्या इस खँडहर के भीतर घुसकर आप उनका मुकाबला कर सकेंगे?
शिवदत्त––क्यों नहीं!
रूहा––कभी नहीं। इसके अन्दर सौ आदमियों से ज्यादे के जाने की जगह नहीं है और इतने आदमियों को वीरेन्द्रसिंह के साथी सहज ही में काट गिरावेंगे।
शिव––हमारे आदमी दीवारों पर चढ़ कर हमला करेंगे और सबसे भारी बात यह है कि वे लोग दो ही तीन दिन में भूख-प्यास से तंग होकर लाचार बाहर निकलेंगे, उस समय उनको मार लेना कोई बड़ी बात नहीं है।
रूहा––सो भी नहीं हो सकता, क्योंकि यह खँडहर एक छोटा सा तिलिस्म है जिसका रोहतासगढ़ के तहखाने वाले तिलिस्म से सम्बन्ध है। इसके अन्दर घुसना और दीवारों पर चढ़ना खेल नहीं है। वीरेन्द्रसिंह और उनके लड़कों को इस खँडहर का बहुत कुछ भेद मालूम है और आप कुछ भी नहीं जानते इसी से समझ लीजिए कि आपमें और उनमें क्या फर्क है, इसके अतिरिक्त इस खँडहर में बहुत से तहखाने और सुरंगें भी हैं, जिनसे वे लोग बहुत फायदा उठा सकते हैं।
शिवदत्त––(कुछ सोच कर) आप बड़े बुद्धिमान हैं और इस खंडहर का हाल अच्छी तरह जानते हैं। अब मैं अपना बिल्कुल काम आप ही की राय पर छोड़ता हूँ, जो आप कहेंगे मैं वही करूँगा, अब आप ही कहिये क्या किया जाय?
रूहा––अच्छा मैं आपकी मदद करूँगा और राय दूँगा। पहले आप बतावें कि क्या वीरेन्द्रसिंह के यहाँ आने का सबब आप जानते हैं?
शिवदत्त––नहीं।
रूहा––इसका असल हाल मुझे मालूम हो चुका है। (भीमसेन की तरफ देखकर) उस आदमी का कहना बहुत ठीक है।
भीमसेन––बेशक ऐसा ही है, वह आपका शागिर्द होकर आपसे झूठ कभी नहीं बोलेगा।
शिवदत्त––क्या बात है?
रूहा––हम लोग यहाँ आ रहे थे तो रास्ते में मेरा एक चेला मिला था जिसकी जुबानी वीरेन्द्रसिंह के यहाँ आने का सबब हम लोगों को मालूम हो गया।
शिवदन––क्या मालूम हुआ?
रूहा––इस खँडहर के तहखाने में कुँअर इन्द्रजीतसिंह न मालूम क्यों कर जा फँसे हैं जो किसी तरह निकल नहीं सकते, उन्हीं को छुड़ाने के लिए ये लोग आये हैं। मैं खँडहर के हरएक तहखाने और उसके रास्ते को जानता हूँ, अगर चाहूँ तो कुँअर इन्द्र-