जा बैठा, और भीमसेन से बातचीत करने लगा। उन सवारों ने भी कमर खोली जो भीमसेन के साथ आये थे।
भीमसेन––(गद्गद स्वर से) इन चरणों के दर्शन की कदापि आशा न थी।
शिवदत्त––ठीक है, केवल मेरी ही भूल ने यह सब किया, परन्तु आज मुझ पर ईश्वर की दया हुई है, जिसका सबूत इससे बढ़कर और क्या हो सकता है कि वीरेन्द्रसिंह को मैंने फाँस लिया और मेरा प्यारा लड़का भी मुझसे आ मिला। हाँ, यह कहो, तुम्हें छुट्टी क्योंकर मिली?
भीमसेन––(अपने साथियों में से एक की तरफ इशारा करके) केवल इनकी बदौलत मेरी जान बची। भीमसेन ने उस आदमी को जिसको तरह इशारा किया था अपने पास बुलाया और बैठने का इशारा किया, वह अदब के साथ सलाम करने के बाद बैठ गया। उसकी उम्र लगभग चालीस वर्ष के होगी, शरीर दुबला और कमजोर था। रंग यद्यपि गोरा और आँखें बड़ी थीं परन्तु चेहरे से उदासी और लाचारी पाई जाती थी और यह भी मालूम होता था कि कमजोर होने पर भी क्रोध ने उसे अपना सेवक बना रक्खा है।
भीमसेन––इसी ने मेरी जान बचाई है। यद्यपि यह बहुत दुबला और कमजोर मालूम होता है परन्तु परले सिरे का दिलावर और बात का धनी है और मैं दृढ़तापूर्वक कह सकता हूँ कि इसके ऐसा चतुर और बुद्धिमान होना आजकल के जमाने में कठिन है। यह ऐयार नहीं है मगर ऐयारों को कोई चीज नहीं समझता! यह रोहतासगढ़ का रहने वाला है, वीरेन्द्रसिंह के कारिन्दों के हाथ से दुःखी होकर भागा और इसने कसम खा ली है कि जब तक वीरेन्द्रसिंह और उनके खानदान का नाम-निशान न मिटा लूँगा अन्न न खाऊँगा, केवल कन्दमूल खाकर जान बचाऊँगा। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह जो कुछ चाहे कर सकता है। रोहतासगढ़ के तहखाने और (हाथ का इशारा करके) इस खँडहर का भेद भी यह बखूबी जानता है जिसमें वीरेन्द्रसिंह वगैरह लाचार और आपके सिपाहियों से घिरे पड़े हैं। इसने मुझे जिस चालाकी से निकाला उसका हाल इस समय कह कर समय नष्ट करना उचित नहीं जान पड़ता क्योंकि आज ही इस थोड़ी सी बची हुई रात में इसकी मदद से एक भारी काम निकलने की उम्मीद है। अब आप स्वयं इससे बातचीत कर लें।
भीमसेन की बात, जो उस आदमी की तारीफ से भरी हुई थी, खुशी के मारे कूल उठा और उससे स्वयं बातचीत करने लगा।
शिवदत्त––सब के पहले मैं आपका नाम सुनना चाहता हूँ।
रूहा––(धीरे से कान की तरफ झुककर) मुझे लोग बाँकेसिंह कहकर पुकारते थे, परन्तु अब कुछ दिनों के लिए मैंने अपना नाम बदल दिया है। आप मुझे 'रूहा' कहकर पुकारा कीजिए जिसमें किसी को मेरा असल नाम मालूम न हो।
शिवदत्त––जैसा आपने कहा वैसा ही होगा। इस समय तो हमने वीरेन्द्रसिंह को अच्छी तरह घेर लिया है, उनके साथ सिपाही भी बहुत कम हैं जिन्हें हम लोग सहज ही गिरफ्तार कर लेंगे। आपका प्रण भी अब पूरा हुआ ही चाहता है।