पता लग जायगा।
वीरेन्द्रसिंह––(तेजसिंह की तरफ देख कर) बहुत जल्द बन्दोबस्त करो और दो आदमी रोहतासगढ़ भेज कर एक हजार आदमी की फौज बहुत जल्द मँगवाओ। वह फौज ऐसी हो कि सब काम कर सके, अर्थात् जमीन खोदने, सेंध लगाने, सड़क बनाने इत्यादि का काम बखूबी जानती हो।
तेजसिंह––बहुत खूब।
राजा वीरेन्द्रसिंह के साथ-साथ सौ आदमी आये हुए थे। वे सब-के-सब काम में लग गये। बेहोश दुश्मनों के हाथ-पैर बाँध दिये गये और उन्हें उठा कर एक दालान में रख देने के बाद सब लोग खँडहर की मिट्ठी उठा-उठाकर बाहर फेंकने लगे। जल्दी के मारे मालिकों ने भी काम में हाथ लगाया।
रात हो गई। कई मशाल भी जलाये गये, मिट्टी की सफाई बराबर जारी रही, मगर तारासिंह का विचित्र हाल था, उन्हें घड़ी-घड़ी रुलाई आती थी, और उसे वे बड़ी मुश्किल से रोकते थे। यद्यपि तारासिंह ने कुँअर इन्द्रजीतसिंह का हाल बहुत-कुछ झूठ-सच मिलाकर राजा वीरेन्द्रसिंह से कहा था, मगर वे बखूबी जानते थे कि इन्द्रजीतसिंह की अवस्था अच्छी नहीं है, उनकी लाश तो अपनी आँखों से देख ही चुके थे, परन्तु साधु की बातों ने उनकी कुछ तसल्ली कर दी थी। वे समझ गये थे कि इन्द्रजीतसिंह मरे नहीं, बल्कि बेहोश हैं, मगर अफसोस तो यह है कि यह बात केवल तारासिंह को ही मालूम है, भैरोंसिंह को भी यदि इस बात की खबर होती, तो तहखाने में बैठे-बैठे कुमार को होश में लाने का कुछ उद्योग करते। कहीं ऐसा न हो कि बेहोशी में ही कुमार की जान निकल जाय, ऐसी कड़ी बेहोशी का नतीजा अच्छा नहीं होता है, इसके अतिरिक्त कई दिनों से कुमार बेहोशी की अवस्था में पड़े हैं, बेहोशी भी ऐसी कि जिसने बिल्कुल ही मुर्दा बना दिया, क्या जाने, जीते भी हैं या वास्तव में मर ही गये।
ऐसी-ऐसी बातों के विचार से तारासिंह बहुत ही बेचैन थे, मगर अपने दिल का हाल किसी से कहते नहीं थे।
यहाँ से थोड़ी दूर पर एक गाँव था। कई आदमी दौड़ गये और कुदाल-फावड़ा इत्यादि जमीन खोदने का सामान वहाँ से ले आये और बहुत से मजदूरों को साथ लिवाते आये। रात-भर काम लगा रहा, और सवेरा होते-होते तक खँडहर साफ हो गया।
अब उस दालान की खुदाई शुरू हुई, जिसके बगल वाली कोठरी के अन्दर से तहखाने में जाने का रास्ता था। हाथ-भर तक जमीन खुदने के बाद लोहे की सतह निकल आई, जिसमें छेद होना भी मुश्किल था। यह देखकर वीरेन्द्रसिंह को भी बहुत रंज हुआ और उन्होंने खण्डहर के बीच की जमीन अर्थात् चौक को खोदने का हुक्म दिया।
दूसरे दिन चौक की खुदाई से छुट्टी मिली। खुद जाने पर वहाँ एक छोटी-सी खूबसूरत बावली निकली; जिसके चारों तरफ छोटी-छोटी संगमरमर की सीढ़ियाँ थीं। यह बावली दस गज से ज्यादा गहरी न थी, और इसके नीचे की सतह तीन गज चौड़ी और इतनी ही लम्बी होगी। दो पहर दिन चढ़ते-चढ़ते उस बावली की मिट्टी निकल