कर बातें करने लगे। दुश्मन का एक आदमी उस तहखाने में कैदियों की निगहबानी कर रहा था। कैदी हथकड़ी और बेड़ी के सबब बेबस थे। जब हम दोनों ने उस आदमी को गिरफ्तार किया और हाल जानने के लिए बहुत-कुछ मारा-पीटा, तब वह राह पर आया। उसकी जुबानी मालूम हुआ कि हम लोगों का दुश्मन अर्थात् उसका मालिक बहुत से आदमियों को साथ ले यहाँ आया ही चाहता है। तब भैरोंसिंह ने मुझे कहा कि इस समय हम लोगों का इस तहखाने से बाहर निकलना मुनासिब नहीं है, कौन ठिकाना बाहर निकलकर दुश्मनों से मुलाकात हो जाय। वे लोग बहुत होंगे और हम लोग केवल तीन आदमी हैं ताज्जुब नहीं कि तकलीफ उठानी पड़े, इससे यही बेहतर है कि तुम बाहर जाओ और जब दुश्मन लोग इस खँडहर में आ जायें, तो उन्हें किसी तरह गिरफ्तार करी। उन्हीं की आज्ञा पाकर मैं अकेला तहखाने के बाहर निकल आया और मैंने दुश्मनों को गिरफ्तार भी कर लिया।
तेजसिंह––(खुश होकर और हाथ का इशारा करके) मालूम होता है कि वे लोग जो उस पेड़ के नीचे पड़े हैं और कुछ खँडहर के दरवाजे पर दिखाई देते हैं, सब तुम्हारी ही कारीगरी से बेहोश हुए हैं। उन्हें किस तरह बेहोश किया?
तारासिंह––खँडहर के अन्दर आग सुलगाई और उसमें बेहोशी की दवा डाली, जब तक वे लोग आवें तब तक धुआँ अच्छी तरह फैल गया। ऐसी कड़ी दवा से वे लोग क्योंकर बच सकते थे, जरा-सा धुआँ आँख में लगना बहुत था। दुश्मन के केवल दो आदमी बच गये हैं, (घोड़ों की तरफ देखकर) मालूम होता है, आपको आते देख वे लोग भाग गए, यह क्या हुआ!
तेजसिंह––(चारों तरफ देखकर) जाने दो, क्या हर्ज है। हाँ तो अब हम लोगों को तहखाने में चलना चाहिए।
तारासिंह––शायद अब हम लोग तहखाने में न जा सकें।
कमला––सो क्यों?
तारासिंह––उन लोगों में एक साधु भी था, वह बड़ा ही चालाक और होशियार था। आँख में धुआँ लगते ही समझ गया कि इसमें बेहोशी का असर है, अब दम के दम में हम लोग बेहोश हो जायेंगे। उसी समय एक आदमी ने जो पहले हमलोगों को देखकर भाग गया था और छिपकर मेरी कार्रवाई देख रहा था, पहुँचकर उसे हमलोगों के आने की खबर दे दी और यह भी कह दिया कि अभी तक कामिनी, किशोरी और इन्द्रजीतसिंह तहखाने में हैं बल्कि राजा वीरेन्द्रसिंह का एक ऐयार भी तहखाने में है। यह सुनते ही वह कुछ खुश हुआ और बोला, "अब हमलोग तो बेहोश हुआ ही चाहते हैं, धोखे में पड़ ही चुके हैं, मगर अब हम यहाँ के शाहदरवाजे को बन्द कर देते हैं, फिर किसी की मजाल नहीं कि तहखाने में जा सके और उन लोगों को निकाल सके जो तहखाने के अन्दर अभी तक बैठे हुए हैं।" इस बात को सुनकर उस जासूस ने कहा कि 'हमलोगों का एक आदमी भी उसी तहखाने में है।' साधु ने जवाब दिया कि 'अब उसका भी उसी में घुटकर मर जाना बेहतर होगा।' फिर न मालूम क्या हुआ और उस साधु ने क्या किया अथवा शादरवाजा कौन है और किस तरह खुलता या बन्द होता है!
च॰ स॰-2-4