पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/६६

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शाहदरवाजे को अभी ऐसा बन्द करता हूँ की फिर ऐयार का बाप भी तहखाने में नहीं जा सकेगा।

इसके जवाब में उस आदमी ने, जो अभी दौड़ता हुआ आया था, कहाँ की "हमारा एक आदमी भी तहखाने में ही है।"

साधु––खैर,अब तो उसका भी उसी तहखाने में घुट कर मर जाना बेहतर है।

तारासिंह ने उस आदमी को पहचान लिया जो खँडहर के पिछवाड़े की तरफ से दौड़ता हुआ आया था। या उन्हीं दोनों आदमियों में से एक था जो भैरोसिंह और तारासिंह को कुएँ पर देख डर के मारे भाग गए थे। ना मालूम कहाँ छुप रहा था जो इस समय बाबा जी को देखकर बेधड़क आ पहुँचा।

साधु ने धुएँ का ख्याल बिल्कुल ही ना किया और खँडहर के अंदर जाकर न मालूम किस कोठरी में घुस गया।

तारासिंह को कुँअर इन्द्रजीतसिंह के मरने का जितना गम था, उसे पाठक से समझ सकते हैं परन्तु उसको उस समय बड़ा ही आश्चर्य हुआ जब साधु के मुँह से यह सुना कि "ताज्जुब नहीं कि ऐयारों ने इन्द्रजीतसिंह को मुर्दा समझ लिया हो!" बल्कि यों कहना चाहिए कि इस बात से तारासिंह को खुश कर दिया। वे अपने दिल में सोचने लगे कि बेशक हम लोगों ने धोखा खाया, मगर ना मालूम उन्हें कैसी दवा खिलाई गई जिसने बिल्कुल मुर्दा ही बना दिया। यदि इस समय भैरोसिंह के पास पहुँचकर खुशखबरी सुनाई जाती है तो क्या हाँ अच्छी बात थी। मगर कम्बख्त साधु तो कहता है कि मैं शाहदरवाजे को ही बन्द कर देता हूँ जिसने फिर कोई आदमी तहखाने में न जा सके। यदि ऐसा हुआ तो बड़ी ही मुश्किल होगी। इन्द्रजीतसिंह अगर जीते भी है तो अब मर जायेंगे! न मालूम यह शाहदरवाजा कौन सा है और किस तरह खुलता और बन्द होता है?

वे लोग तो सुन ही चुके थे कि वीरेंद्रसिंह का एक ऐयार नीम के पेड़ पर चढ़ा हुआ है। बाबाजी शाहदरवाजा बन्द करने चले गये, मगर तारासिंह को इसकी कुछ भी चिन्ता नहीं थी, क्योंकि वे इस बात को बखूबी जानते थे कि बेहोशी का धुआँ जो इस खँडहर में फैला हुआ है, अब इन लोगों को ज्यादा देर तक ठहरने ना देगा, थोड़ी ही देर में बेहोशी आ जाएगी और फिर किसी योग्य न रहेंगे, और आखिर वैसा ही हुआ।

यद्यपि वे लोग ज्यादा धुएँ में नहीं फँसे थे, तो भी जो कुछ उन लोगों की आँखों और नाक की राह से पेट में चला गया था, वही उन लोगों को बेदम करने के लिए काफी था। वे लोग कुएँ पर आ पहुँचे और चारों तरफ से उस नीम के पेड़ को घेर लिया। इस समय उन लोगों की अवस्था शराबियों की सी हो रही थी। उसी समय तारासिंह ने पेड़ पर से चिल्लाकर कहा, "ओ हो हो हो, क्या अच्छे वक्त पर हमारा मालिका पहुँचा। जब जरूरत इन कमबख्तों की जान जाएगी!"

तारासिंह की बात सुनते ही वे लोग ताज्जुब मैं आ गया और मैदान की तरफ देखने लगे। वास्तव में पूरब की तरफ गर्दन उठ रही थी और मालूम होता था कि किसी राजा की सवारी इस तरफ आ रही है। उन लोगों के दिमाग पर आप बेहोशी का असर