रहे हैं। उस समय तारासिंह के मुँह से यकायक निकल पड़ा––"ओफ, अगर जरा भी देर होती तो काम बिगड़ चुका था, खैर, अब यह लोग कहाँ जा सकते हैं।"
आग में से बहुत ज्यादा धुआँ निकला और खँडहर भर में फैल गया। इसके बाद तारासिंह खँडहर के बाहर निकले और कुएँ के पास जाकर नीम के पेड़ पर चढ़ गए तथा अपने को घने पत्तों की आड़ में छिपा लिया। वह पेड़ इतना ऊँचा था कि उस पर से खँडहर के भीतर का मैदान साफ नजर पड़ता था। वे सवार, जिन्हें तारासिंह ने दूर से देखा था, अब खंडहर के पास आ पहुँचे, तारासिंह ने पेड़ पर चढ़े-चढ़े गिना तो मालूम हुआ कि बारह सवार है। उनमें सबके आगे एक साधु था जिसकी सफेद दाढ़ी नाभि तक पहुँच रही थी।
पाठक,यह वही बाबाजी है जिन्होंने रोहतासगढ़ मैं राजा दिग्विजय सिंह के पास रात के समय पहुँच कर उन्हें भड़काया और राजा बिरेंद्रसिंह वगैरह को कैद कराया था।
खंडहर के पास पहुँचकर वे लोग रुके। घोड़े की बागडोरें पत्थरों से अटका कर दस आदमी तो खंडहर के अन्दर घुसे और दो आदमी घोड़े की हिफाजत के लिए बाहर रह गये।
खंडहर के अंदर धुआँ देखकर बुड्ढे साधु ने कहा, "यह धुआँ कैसा है?"
एक––किसी मुसाफिर ने आकर रसोई बनाई होगी।
दूसरा––मगर धुआँ बहुत कड़वा है।
तीसरा––ओफ, आँखों से और नाक से पानी बहने लगा।
साधु––अगर किसी मुसाफिर ने यहाँ आकर रसोई पकाई होगी तो हांडी, पत्थर और पानी का बर्तन इत्यादि कुछ और भी तो यहाँ दिखाई देता। (एक आदमी की तरफ देख कर) हमें इस दोहे का रंग बेढब मालूम होता है, इसकी कड़वाहट इसकी रंगत और इसकी बू कहे देती है की धुएँ में बेहोशी का असर है। है, है, जरूर ऐसा ही है, कुछ अमल भी आ चला और सिर भी घूमने लगा! (जोर से) अरे बाहादुरो,बेशक तुम लोग धोखे में डाले गए, यहाँ कोई ऐयार आ पहुँचा है,क्या ताज्जुब है, अगर तहखाने में से कामिनी को निकालकर ले गया हो।
नीम के पेड़ पर बैठे हुए तारासिंह उस साधु की सब बातें सुन रहे थे क्योंकि वह नीम का पेड़ खँडहर के फाटक के पास ही था। साधु की बातें अभी पूरी न होने पाई हे के खँडहर के पिछवाड़े की तरफ से एक आदमी दौड़ता हुआ आया। मालूम होता है कि साधु की आखिरी बात उसने सुन ली थी, क्योंकि पहुँचने के साथ ही उसने पुकार कर कहा,"नहीं-नहीं, कामिनी को कोई निकाल कर नहीं ले गया मगर इसमें भी संदेह नहीं कि वीरेंद्रसिंह के दो ऐयार यहाँ आए हैं,एक तहखाने के अंदर है दूसरा (हाथ से इशारा करके) इस नीम के पेड़ पर चढ़ा हुआ है।"
साधु––बस,तब तो मार लिया। बेशक हम लोग आफत में फँस गए है परंतु कामिनी और इंद्रजीत, यह तुम लोग तहखाने में पहुँचा चुके हो, अब बाहर नहीं जा सकते। ताज्जुब नहीं है कि इन ऐयारों ने इंद्रजीतसिंह को मुर्दा समझ लिया हो! देखो, मैं