पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/६

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छिपकर उसने अपनी जान बचाई। उसके साथियों में से एक भी न बचा, सब मारे गये। अग्निदत्त के भी केवल दो ही आदमी जीवित बचे। उस संगदिल ने रोती और चिल्लाती हुई बेचारी किशोरी को जबर्दस्ती उठा लिया और एक तरफ का रास्ता लिया।

पाठक आश्चर्य करते होंगे कि अग्निदत्त को तो राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों ने राजगृह में गिरफ्तार करके चुनार भेज दिया था, वह यकायक यहाँ कैसे आ पहुँचा? इसलिए अग्निदत्त का थोड़ा-सा हाल इस जगह लिख देना हम मुनासिब समझते हैं।

राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों ने दीवान अग्निदत्त को गिरफ्तार करके अपने बीस सवारों के पहरे में चुनारगढ़ रवाना कर दिया और एक चिट्ठी भी सब हाल की महाराज सुरेन्द्रसिंह को लिखकर उन्हीं लोगों की मार्फत भेजी। अग्निदत्त को हथकड़ी डाल घोड़े पर सवार कराया गया और उसके पैर रस्सी से घोड़े की जीन के साथ बाँध दिये गए। घोड़े की लम्बी बागडोर दोनों तरफ से दो सवारों ने पकड़ ली और सफर शुरू किया। तीसरे दिन जब वे लोग सोन नदी के पास पहुँचे, अर्थात् जब वह नदी दो कोस दूर रह गई, तब उन लोगों पर डाका पड़ा। पचास आदमियों ने चारों तरफ से घेर लिया। घण्टे भर की लड़ाई में राजा वीरेन्द्रसिंह के सब आदमी मारे गये। खबर पहुँचाने के लिए भी एक आदमी न बचा और अग्निदत्त को उन लोगों के हाथों से छुट्टी मिली। वे डाकू सब अग्निदत्त के तरफदार और उन लोगों में से थे जो गयाजी में फसाद मचाया करते और उन लोगों की जानें लेते और घर लूटते थे जो दीवान अग्निदत्त के विरुद्ध जाने जाते। इस तरह अग्निदत्त को छुट्टी मिली और बहुत दिन तक इस डाके की खबर राजा वीरेन्द्रसिंह या उनके आदमियों को न मिली।

यद्यपि दीवान अग्निदत्त के हाथ से गया की दीवानी जाती रही और वह एक साधारण आदमी की तरह मारा-मारा फिरने लगा, तथापि वह अपने साथी डाकुओं में मालदार गिना जाता था क्योंकि उसके पास जुल्म की कमाई हुई दौलत बहुत थी और वह उस दौलत को राजगृह से थोड़ी दूर पर एक मढ़ी में, जो पहाड़ी के ऊपर थी, रखता था। इस मढ़ी का हाल दस-बारह आदमियों के सिवाय और किसी को भी मालूम न था। उस दौलत को निकालने में अग्निदत्त ने विलम्ब न किया और उसे अपने कब्जे में लेकर साथी डाकुओं के साथ अपनी धुन में चारों तरफ घूमने तथा इस बात की टोह लेने लगा कि राजा वीरेन्द्रसिंह की तरफ क्या होता है।

थोड़े ही दिन बाद मौका समझकर वह रोहतासगढ़ के चारों तरफ घूमने लगा और जिस तरह किशोरी से मिला, उसका हाल आप ऊपर पढ़ चुके हैं।

जिस जगह अग्निदत्त किशोरी से मिला था, उससे थोड़ी ही दूर पर एक पहाड़ी थी जिसमें कई खोह और गार थे। वह किशोरी को उठाकर उसी पहाड़ी पर ले गया। रोते और चिल्लाते-चिल्लाते किशोरी बेहोश हो गई थी। अग्निदत्त ने उसे खोह के अन्दर ले जाकर लिटा दिया और आप बाहर चला आया।

पहर रात जाते-जाते जब किशोरी होश में आई, तो उसने अपने को अजब हालत में पाया। ऊपर-नीचे चारों तरफ पत्थर देखकर वह समझ गई कि मैं किसी खोह में हूँ। एक तरफ चिराग जल रहा था‌। गुलाब की फूल-सी नाजुक किशोरी की अवस्था इस