को तहखाने के बाहर कर देती हूँ।" यह बात सभी को मालूम ही थी इसी बारह नम्बर की कोठरी में से किशोरी गायब हो गई थी, इसलिए सभी को विश्वास था कि इस कोठरी में से कोई रास्ता बाहर निकल जाने के लिए जरूर है।
सभी की हथकड़ी-बेड़ी खोल दी गई। इसके बाद सब कोई उस कोठरी में घुसे और उस राक्षसी की मदद से तहखाने के बाहर हो गये। जाते समय राक्षसी ने उस कोठरी को बन्द कर दिया। बाहर होते ही राक्षसी और भूतनाथ राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह से बिना कुछ कहे चले गए और जंगल में घुसकर देखते-ही-देखते नजरों से गायब हो गए। उन दोनों के बारे में सभी को शक बना ही रहा।
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दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़ कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फाटक के बाहर मैदान में घोर युद्ध होने लगा। नाहरसिंह की बहादुरी देखने योग्य थी। वह हाथ में तलवार लिए जिस तरफ को निकल जाता था, पूरा सफाया कर देता था। उसकी बहादुरी देखकर उसकी मातहत फौज की भी हिम्मत दूनी हो गई और वह ककड़ी की तरह दुश्मनों को काटने लगी। उसी समय पाँच सौ बहादुरों को साथ लिए राजा वीरेन्द्रसिंह, कुँअर आनन्दसिंह और तेजसिंह बगैरह भी आ पहुँचे और उस फौज में मिल गये जो नाहरसिंह की मातहती में लड़ रही थी। ये पाँच सौ आदमी उन्हीं की फौज के थे जो दो-दो, चार-चार करके पहाड़ के ऊपर चढ़ाये गए थे। तहखाने से बाहर निकलने पर राजा वीरेन्द्रसिंह से मुलाकात हुई थी और सब एक जगह हो गये थे।
जिस समय किले वालों को यह मालूम हुआ कि राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह भी उस फौज में आ मिले, उस समय उनकी हिम्मत बिल्कुल जाती रही। बिना दिल का हौसला निकाले ही उन लोगों ने हथियार रख दिए और सुलह का डंका बजा दिया। पहाड़ी के नीचे से और फौज भी पहुँच गई और रोहतासगढ़ में राजा वीरेन्द्रसिंह की अमलदारी हो गई। जिस समय राजा वीरेन्द्र सिंह दीवानखाने में पहुँचे वहाँ राजा दिग्विजयसिंह की लाश पाई गई। मालूम हुआ कि उसने आत्मघात कर लिया। उसकी हालत पर राजा वीरेन्द्रसिंह देर तक अफसोस करते रहे।
राजा वीरेन्द्रसिंह ने कुँअर आनन्दसिंह को गद्दी पर बैठाया। सभी ने नजरें दीं। उसी समय कमला भी आ पहुँची। उसने किले में पहुँच कर कोई ऐसा काम नहीं किया था जो लिखने लायक हो। हाँ, गिल्लन के सहित गौहर को जरूर गिरफ्तार कर लिया था। दिग्विजय सिंह की रानी अपने पति के साथ सती हुई। रामानन्द की स्त्री भी अपने पति के साथ जल मरी। शहर में कुमार के नाम की मुनादी करा दी गई