आज मैं अपने हाथ से उन लोगों के सिर काटूँगा!"
दिग्विजयसिंह हाथ में नंगी तलवार लिए हुए अकेला ही तहखाने में गया, मगर जब उस दालान में पहुँचा जिसमें हथकड़ियों और बेड़ियों से कसे हुए वीरेन्द्रसिंह वगैरह रखे गए थे, तो उसको खाली पाया। वह ताज्जुब में आकर चारों तरफ देखने और सोचने लगा कि कैदी लोग कहाँ गायब हो गए। मालूम होता है कि यहाँ भी ऐयार लोग आ पहुँचे, मगर देखना चाहिए कि किस राह से पहुँचे?
दिग्विजयसिंह उस सुरंग में गया जो कब्रिस्तान की तरफ निकल गई थी। वहाँ का दरवाजा उसी तरह बन्द पाया जैसा कि उसने अपने हाथ से बन्द किया था। आखिर लाचार सिर पीटता हुआ लौट आया और दीवानखाने में बदहवास होकर गद्दी पर गिर पड़ा।
11
इस जगह मुख्तसिर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुँअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्यों कर छूटे और कहाँ गए।
हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर 'जोगिया' का संकेत देकर रोहतासगढ़ किले में दाखिल हुई उसके थोड़ी ही देर बाद एक लम्बे कद का आदमी भी, जो असल में भूतनाथ था, 'जोगिया' का संकेत देकर किले के अन्दर चला गया। न मालूम उसने वहाँ क्या-क्या कार्रवाई की, मगर जिस समय मैगजीन उड़ाई गई थी, उस समय वह एक चोबदार की सूरत बना राजमहल के आस-पास घूम रहा था। जब राजा दिग्विजयसिंह घबरा कर महल के बाहर निकला था और चारों तरफ कोलाहल मचा हुआ था, वह इस तरह महल के अन्दर घुस गया कि किसी को गुमान भी न हुआ। इसके पास ठीक वैसी ही ताली मौजूद थी जैसी तहखाने की ताली राजा दिग्विजयसिंह के पास थी। भूतनाथ जल्दी-जल्दी उस घर में पहुँचा जिसमें तहखाने के अन्दर जाने का रास्ता था। उसने तुरन्त दरवाजा खोला और अन्दर जाकर उसी ताली से फिर बन्द कर दिया। उस दरवाजे में एक ही ताली बाहर-भीतर दोनों तरफ से लगती थी। कई दरवाजों को खोलता हुआ वह उस दालान में पहुँचा जिसमें वीरेन्द्रसिंह वगैरह कैद थे और राजा वीरेन्द्रसिंह के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। राजा वीरेन्द्रसिंह उस समय बड़ी चिन्ता में थे। मैगजीन उड़ने की आवाज उनके कान तक भी पहुँची थी, बल्कि मालूम रहे कि उस आवाज के सदमे से समूचा तहखाना हिल गया। वे भी यही सोच रहे थे कि शायद हमारे ऐयार लोग किले के अन्दर पहुँच गए। जिस समय भूतनाथ हाथ जोड़ कर उनके सामने जा खड़ा हुआ, वे चौंके और भुतनाथ की तरफ देखकर बोले "तू कौन है और यहाँ क्यों आया?"