पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/४३

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आनन्दसिंह के नाम की माला जपती हुई दिन बिताने लगी। बहुत-सी जरूरी चीजों के अतिरिक्त ऐयारी के सामान से भरा हुआ एक बाँस का पिटारा शेरसिंह का रक्खा हुआ उस तहखाने में मौजूद था जो कामिनी के हाथ लगा। यद्यपि कामिनी कुछ ऐयारी भी जानती थी परन्तु इस समय उसे ऐयारी के सामान की विशेष जरूरत न थी, हाँ, शेरसिंह की जायदाद में से एक कुप्पी तेल कामिनी ने बेशक खर्च किया, क्योंकि चिराग जलाने की नित्य ही आवश्यकता पड़ती थी।

कमला और शेरसिंह से मिलने की उम्मीद में कामिनी ने उस तहखाने में रहना स्वीकार किया, परन्तु कई दिन बीत जाने पर भी किसी से मुलाकात न हुई। एक दिन सूरत बदलकर कामिनी तहखाने से निकली और खँडहर के बाहर ही सोचने लगी कि किधर जाये और क्या करे। एकाएक कई आदमियों की बातचीत की आवाज उसके कानों में पड़ी और मालूम हुआ कि वे लोग आपस में बातचीत करते हुए इसी खँडहर की तरफ आ रहे हैं। थोड़ी ही देर में चार आदमी भी दिखाई पड़े। उस समय कामिनी अपने को बचाने के लिए खँडहर के अन्दर घुस गई और राह देखने लगी कि वे लोग आगे बढ़ जायँ तो फिर निकलूँ, मगर ऐसा न हुआ, क्योंकि बात-की-बात में वे चारों आदमी एक लाश उठाए हुए इसी खँडहर के अन्दर आ पहुँचे।

इस खँडहर में अभी तक कई कोठरियाँ मौजूद थीं। यद्यपि उनकी अवस्था बहुत ही खराब थी, किवाड़ के पल्ले तक उनमें न थे, जगह-जगह पर कंकड़-पत्थर-कतवार के ढेर लगे हुए थे, परन्तु मसाले की मजबूती पर ध्यान दे आँधी-पानी अथवा तूफान में भी बहुत आदमी उन कोठरियों में रहकर अपनी जान की हिफाजत कर सकते थे। खँडहर के चारों तरफ की दीवार यद्यपि कहीं-कहीं से टूटी हुई थी, तथापि बहुत ही मजबूत और चौड़ी थी। कामिनी एक कोठरी में घुस गई और छिप कर देखने लगी कि वे चारों आदमी उस खँडहर में आकर क्या करते और उस लाश को कहाँ रखते हैं।

लाश उठाये हुए चारों आदमी इस खँडहर में जाकर इस तरह घूमने लगे, जैसे हरएक कोठरी, दालान बल्कि यहाँ की बित्ता-बित्ता भर जमीन उन लोगों की देखी हुई हो। चूनेपत्थर के ढेरों में घूमते और रास्ता निकालते हुए वे लोग एक कोठरी के अन्दर घुस गए जो उस खँडहर भर में सब कोठरियों से छोटी थी और दो घण्टे तक बाहर न निकले। इसके बाद जब वे लोग बाहर आये तो खाली हाथ थे अर्थात् लाश न थी, शायद उस कोठरी में गाड़ या रख आये हों।

जब वे आदमी खँडहर से बाहर ही मैदान की तरफ चले गये, बल्कि बहुत दूर निकल गये तब कामिनी भी कोठरी से बाहर निकली और चारों तरफ देखने लगी। उसे आज तक यही विश्वास था कि इस खँडहर का हाल शेरसिंह, कमला, मेरे और उसे लम्बे आदमी के सिवाय, जो शेरसिंह से मिलने के लिए यहाँ आया था, किसी पाँचवें को मालूम नहीं है। मगर आज की कैफियत देखकर उसका खयाल बदल गया और वह तरह-तरह के सोच-विचार में पड़ गई। थोड़ी देर बाद वह उसी कोठरी की तरफ बढ़ी जिसमें वे लोग लाश छोड़ गये थे मगर उस कोठरी में ऐसा अंधकार था कि अन्दर जाने का साहस न पड़ा। आखिर अपने तहखाने में गई और शेरसिंह के पिटारे में से एक मोम-