पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/३२

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अब सवेरा हो गया, आसमान पर पूरब तरफ सूर्य की लालिमा दिखाई लेने लगी, कमलिनी ने हँसकर अपनी ऐयारा तारा की तरफ देखा, वह गर्दन हिलाकर हँसी और बोली, "चलिए, अब देर करने की कोई जरूरत नहीं।"

बाकी घोड़े उसी तरह उसी जगह छोड़ दिये गये। दो घोड़ों पर कमलिनी और तारा सवार हुईं और हँसती हुई एक तरफ को चली गईं।


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अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहाँ राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह करने के बाद राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह उसी किले में जाकर मेहमान हुए। वहीं एक छोटी-सी कमेटी की गई तथा उसी समय कुँअर इन्द्रजीतसिंह का पता लगाने और उन्हें ले आने के लिए शेरसिंह और देवीसिंह रवाना किए गए।

उन दोनों के चले जाने के बाद यह राय ठहरी कि यहाँ का हाल-चाल और रोहतासगढ़ के फतह होने का समाचार महाराज सुरेन्द्रसिंह के पास चुनारगढ़ भेजना चाहिए। यद्यपि यह खबर उन्हें पहुँच गई होगी, तथापि किसी ऐयार को वहाँ भेजना मुनासिब है और इस काम के लिए भैरोंसिंह चुने गए। राजा वीरेन्द्रसिंह ने अपने हाथ से पिता को पत्र लिखा और भैरोंसिंह को तलब करके चुनारगढ़ जाने के लिए कहा।

भैरोंसिंह––मैं चुनारगढ़ जाने के लिए तो तैयार हूँ परन्तु दो बातों की हविस जी में रह जायेगी।

वीरेन्द्रसिंह––वह क्या?

भैरोंसिंह––एक तो फतह की खुशी का इनाम बँटने के समय मैं नहीं रहूँगा, इसका...

वीरेन्द्रसिंह––यह हविस तो अभी पूरी हो जायेगी, दूसरी क्या है?

तेजसिंह––यह लड़का बहुत ही लालची है। यह नहीं सोचता कि यदि मैं न रहूँगा तो मेरे बदले का इनाम मेरे पिता तो पावेंगे!

भैरोंसिंह––(हाथ जोड़ कर और तेजसिंह की तरफ देखकर) यह उम्मीद तो है ही, परन्तु इस समय मैं आपसे भी कुछ इनाम लिया चाहता हूँ।

वीरेन्द्रसिंह––अवश्य ऐसा होना चाहिए, क्योंकि तुम्हारे लिए हम और ये एक समान हैं।

तेजसिंह––आप और भी शह दीजिए जिसमें यदि और कुछ न मिल सके तो मेरा ऐयारी का बटुआ ही ले ले।

भैरोंसिंह––मेरे लिए वही बहुत है।