पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/३१

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अभी नया बना है या आज ही कल में इसके ऊपर चूना फेरा गया है। रात दो ज्यादा जा चुकी थी, चन्द्रमा अपनी पूर्ण कला से आकाश के बीच में दिखाई दे रहे थे, शीतल किरणें चारों तरफ फैली हुई थीं और मालूम होता था कि जमीन पर चाँदी का पत्र जड़ा हुआ है। ये लोग घना जंगल पीछे छोड़ आये थे और इस जगह पेड़ बहुत कम और छोटे-छोटे थे, उस मकान के चारो तरफ दो सौ बीघे के लगभग साफ मैदान था।

अच्छी तरह जाँच करने और खयाल दौड़ाने से मालूम हो गया कि इस जगह पर फौज नहीं है और न लड़ाई का कुछ सामान ही है, अगर कुछ है तो उसी मकान के अन्दर होगा। आखिर थोड़ी देर तक सोच-विचार कर ये लोग मकान के पास पहुँचे।

यह मकान बहुत बड़ा न था, लगभग पचास गज के लम्बा और इसी कदर चौड़ा होगा। इसकी ऊँचाई भी पैंतीस गज से ज्यादा न होगी। चारों तरफ की दीवारें साफ थीं, न तो किसी तरफ कोई दरवाजा था और न कोई खिड़की। ये लोग चारों तरफ घूमे, मगर अन्दर जाने का रास्ता न मिला, आखिर सब लोग घोड़ों पर से उतरकर एक तरफ खड़े हो गये। देवीसिंह ने कमन्द फेंका और उसके सहारे से दीवार पर चढ़ कर देखना चाहा कि अन्दर क्या है।

ऊपर की दीवार बहुत चौड़ी थी। सभी ने देखा कि देवीसिंह दीवार पर खड़े होकर अन्दर की तरफ बड़े गौर से देख रहे हैं। यकायक देवीसिंह खिलखिला कर हँसे और बिना कुछ कहे उस मकान के अन्दर कूद पड़े।

यह देख सभी को ताज्जुब हुआ। कमलिनी ने तारा के कान में कुछ कहा जिसके जवाब में उसने सिर हिला दिया। थोड़ी देर तक देवीसिंह की राह देखी गई, आखिर उसी कमन्द के सहारे शेरसिंह चढ़ गये और उनकी भी वही अवस्था देखने में आई अर्थात् कुछ देर तक गौर से देखने के बाद देवीसिंह की तरह हँस कर शेरसिंह भी उस मकान के अन्दर कूद गए।

अब तो कुमार के आश्चर्य की कोई हद न रही। वे ताज्जुब में आकर सोचने लगे कि यह क्या मामला है और इस मकान के अन्दर क्या है जिसे देख दोनों ऐयारों ने ऐसा किया? "जो हो, अब मैं भी ऊपर चढूँगा और देखूँगा कि क्या है!" कहकर कुमार भी उसी कमन्द के सहारे ऊपर चढ़ने को तैयार हुए, मगर कमलिनी ने हाथ पकड़ लिया और कहा, "ऐसा नहीं हो सकता, अभी हमारे कई आदमी मौजूद हैं, पहले इन्हें जा लेने दीजिए।" लाचार कुमार को रुकना पड़ा। कमलिनी ने अपने उन सवारों की तरफ देखा जो उसके साथ आये थे और कहा, "तुम लोगों में से एक आदमी ऊपर जाकर देखो कि क्या है?"

हुक्म पाकर उसी कमन्द के सहारे एक आदमी ऊपर गया और उसकी भी वही दशा हुई, दूसरा गया वह भी कूद पड़ा, फिर तीसरा गया वह भी न लौटा, यहाँ तक कि कमलिनी के कुल आदमी इसी तरह उस मकान के अन्दर जा दाखिल हुए। कमलिनी ने बहुत रोका और मना किया मगर कुमार ने उसकी बात पर ध्यान न दिया। वे भी उसी कमन्द के सहारे ऊपर चढ़ गये और अपने साथियों की तरह गौर से थोड़ी देर तक देखने के बाद हँसते हुए मकान के अन्दर कूद पड़े।