पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
28
 

अवस्था थी इसे अच्छी तरह समझना जरा कठिन था। कमलिनी की नेकी, किशोरी की दशा, इश्क की खिंचाखिंची और अग्निदत्त की कार्रवाई के सोच-विचार में ऐसे मग्न हुए कि थोड़ी देर के लिए तन-बदन की सुध भुला दी। केवल इतना जानते रहे कि कमलिनी के पीछे-पीछे किसी काम के लिए कहीं जा रहे हैं। सूर्य अस्त होने के बाद ये लोग उस पहाड़ी के नीचे पहुँचे जिस पर अग्निदत्त रहता था और जहाँ खोह वे अन्दर किशोरी की अन्तिम अवस्था ऊपर के बयान में लिख आये हैं।

इन लोगों का दिल इस समय ऐसा न था कि इस पहाड़ी के नीचे पहुँच कर किसी जरूरी काम के लिए भी कुछ देर तक अटकते। घोड़ों को पेड़ों से बाँध तुरंत चढ़ने लगे और बात-की-बात में पहाड़ी के ऊपर जा पहुँचे। सबसे पहले जिस चीज पर इन लोगों की निगाह पड़ी वह एक लाश थी जिसे इन लोगों में से कोई भी नहीं पहचानता था और इसके बाद भी बहुस-सी लाशें देखने में आई, जिससे इन लोगों का दिल छोटा हो गया और सोचने लगे कि देखें, किशोरी से मुलाकात होती है या नहीं।

इस पहाड़ी के ऊपर एक छोटी-सी मढ़ी बनी हुई थी जिसमें बीस-पच्चीस आदमी रह सकते थे और इसी की बगल में एक गुफा थी जो बहुत लम्बी और अँधेरी थी। पाठक, यह वही गुफा थी जिसमें बेचारी किशोरी दुष्ट अग्निदत्त के हाथ से बेबस होकर जमीन पर गिर पड़ी थी।

इस पहाड़ी के ऊपर बहुत-सी लाशें पड़ी हुई थीं, किसी का सिर कटा हुआ था, किसी को तलवार ने जनेवा काट गिराया था, कोई कमर से दो टुकड़े था, किसी का हाथ कटकर अलग हो गया था, किसी के पेट को खंजर ने फाड़ डाला था और आँत बाहर निकल पड़ी थी, मगर किसी जीते आदमी का नाम-निशान वहाँ न था। ऐसी अवस्था देखकर कुँअर इन्द्रजीतसिंह बहुत घबराये और उन्हें किसी के मिलने से नाउम्मीदी हो गई। ऐयारों ने बटुए से सामान निकालकर बत्ती जलाई और खोह के अन्दर घुसकर देखा तो वहाँ भी एक लाश के सिवाय और कुछ न दिखाई पड़ा। निगाह पड़ते ही देवीसिंह ने पहचान लिया कि यह अग्निदत्त की लाश है। एक खंजर उसके कलेजे में अभी तक चुभा हुआ मौजूद था, केवल उसका कब्जा बाहर दिखाई दे रहा था, उसके पास ही एक लपेटा हुआ कागज पड़ा था। देवीसिंह ने वह कागज उठा लिया और दोनों ऐयार उस लाश को बाहर लाये।

सभी ने अग्निदत्त की लाश को देखा और ताज्जुब किया।

शेरसिंह––इस हरामजादे को इसके कुकर्मों की सजा न मालूम किसने दी!

कमलिनी––हाय, इस कम्बख्त की बदौलत बेचारी किशोरी पर न मालूम क्या-क्या आफतें आईं और अब वह कहाँ या किस अवस्था में है!

देवीसिंह––(चिट्ठी दिखाकर) इसकी लाश के पास से यह चिट्ठी भी मिली है, शायद इससे कुछ पता चले।

कमलिनी––हाँ-हाँ, इसे पढ़ो तो सही, देखें, क्या लिखा है।

सभी का ध्यान उस चिट्ठी पर गया। कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने वह चिट्ठी देवीसिंह के हाथ से ले ली और पढ़कर सभी को सुनायी। यह लिखा था––