भूतनाथ––भूतनाथ को निरा मौलवी न समझ लेना। उस ताली को जो किताब की सूरत में है और जिसे दोनों तरफ से भौंरों ने घेरा हुआ है, भूतनाथ अच्छी तरह पहचानता है।
मायारानी––शाबाश, तुम बहुत ही होशियार और चालाक हो, किसी के फरेब में आने वाले नहीं, मालूम होता है कि इतनी जानकारी तुम्हें उसी कम्बख्त कमलिनी की बदौलत...
भूतनाथ––जी हाँ, बेशक ऐसा ही है, मगर हाय! जिस कमलिनी ने मेरी इतनी इज्जत की, मैं आपके लिए उसी के साथ दुश्मनी कर रहा हूँ और सो भी केवल इसी अजायबघर की ताली के लिए!
मायारानी––अजायबघर की ताली तो तुम्हारी इच्छानुसार तुम्हें देती ही हूँ इसके बाद इससे भी बढ़ कर एक ऐसी चीज तुम्हें दूँगी जिसे देखकर तुम भी कहोगे कि मायारानी ने कुछ दिया।
भूतनाथ––बेशक मुझे आपसे बहुत-कुछ उम्मीद है।
भूतनाथ को उसी जगह बैठाकर मायारानी कहीं चली गई, मगर आधे घण्टे के में एक जड़ाऊ डिब्बा हाथ में लिए हुए आ पहुँची और वह डिब्बा भूतनाथ के सामने रख कर बोली, "लीजिए, वह अनोखी चीज हाजिर है।" भूतनाथ ने डिब्बा खोला। उसके अन्दर गुटके की तरह एक छोटी-सी पुस्तक थी जिसे उलट-पुलटकर भूतनाथ ने अच्छी तरह देखा और तब कहा, "बेशक यही है। अच्छा, अब मैं जाता हूँ, जरा कमलिनी से मिलकर खबर लूं कि उधर क्या हो रहा है।"
भूतनाथ अजायबघर की ताली लेकर मायारानी से बिदा हुआ और तिलिस्मी बाग के बाहर होकर खुशी-खुशी उत्तर की तरफ चल निकला मगर थोड़ी ही दूर जाकर खड़ा हो गया और इधर-उधर देखने लगा। पेड़ की आड़ में से दो आदमी निकलकर भूतनाथ के सामने आये और एक ने आगे बढ़कर पूछा, "टेम गिन चाप[१]?" इसके जवाब में भूतनाथ ने कहा, "चेह[२]!" इतना सुनकर उस आदमी ने भूतनाथ को गले से लगा लिया। इसके बाद तीनों आदमी एक साथ आगे की तरफ रवाना हुए।
12
आज से कुल आठ दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबराई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर चिन्ता, बेचैनी और घबराहट ने चारों तरफ से उसे घेर