पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२२६

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भूतनाथ––इसे ऊपर ले चलिए और टुकड़े-टुकड़े कर नहर में डाल दीजिए, बात की बात में मछलियाँ खा जायेंगी।

मायारानी––हाँ, यह राय बहुत ठीक है। अच्छा, इसे ले चलो।

भूतनाथ ने उस लाश को उठाकर उस लोहे के तख्ते पर रखा और तीनों आदमी खम्भे को थामकर खड़े हो गए। भूतनाथ ने उस चर्खी को उल्टा घुमाना शुरू किया। बात-की-बात में वह तख्ता ऊपर की जमीन के साथ बराबर मिल गया। भूतनाथ ने अन्दर से कोठरी का दरवाजा खोला और उस लाश को बाहर दालान में लाकर पटक दिया। इसके बाद उस कोठरी का दरवाजा जिस तरह पहले खोला था, उसी तरह बन्द कर दिया। मायारानी के इशारे से धनपत ने कमरे से खंजर निकाल कर लाश के टुकड़े किए और हड्डी और मांस नहर में डालने के बाद, नहर से जल लेकर जमीन धो डाली। इसके बाद हर तरह से निश्चिन्त हो अपने-अपने घोड़े पर सवार होकर तीनों आदमी तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुए और आधी रात जाने के पहले ही वहाँ पहुँच कर भूतनाथ ने कहा, "बस लाइए, अब मेरा इनाम दे दीजिये।

मायारानी––हाँ-हाँ, लीजिए, इनाम देने के लिए मैं तैयार हूँ। (मुस्कुराकर) लेकिन भूतनाथ, अगर इनाम में अजायबघर की ताली मैं तुम्हें न दूँ, तो तुम क्या करोगे? क्योंकि मेरा काम तो हो ही चुका है!

भूतनाथ––करेंगे क्या, बस अपनी जान दे देंगे!

मायारानी––अपनी जान दे दोगे तो मेरा क्या बिगड़ेगा?

भूतनाथ––(खिलखिलाकर हँसने के बाद) क्या तुम समझती हो कि मैं सहज ही में अपनी जान दे दूँगा? नहीं-नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। पहले तो मैं कमलिनी के पास जाकर अपना कसूर साफ-साफ कह दूँगा, इसके बाद तुम्हारे सब भेद खोल दूँगा, जो तुमने मुझे बताये हैं। इतना ही नहीं, बल्कि तुम्हारी जान लेकर तब कमलिनी के हाथ से मारा जाऊँगा। इस बाग का, दारोगा वाले मकान का, और मनोरमा के मकान का, रत्ती-रत्ती भेद मुझे मालूम हो चुका है और तुम खुद समझ सकती हो कि मैं कहाँ तक उपद्रव मचा सकता हूँ! तुम यह भी न सोचना कि इस समय इस बाग में रहने के कारण मैं तुम्हारे कब्जे में हूँ, क्योंकि वह ...

मायारानी––बस-बस, बहुत जोश में मत आओ, मैं दिल्लगी के तौर पर इतना कह गई, और तुम सच ही समझ गये! इस बात का पूरा-पूरा विश्वास रखना कि माया-रानी वादा पूरा करने से हटने वाली नहीं है और इनाम देने में भी किसी से कम नहीं है‌। बैठो, मैं अभी अजायबघर की ताली ला देती हूँ।

भूमनाथ––लाइए, और मुझे भी अपने कौल का सच्चा ही समझिये, ऐसे काम कर दिखाऊँगा कि खुश हो जाइएगा और ताज्जुब कीजिएगा।

मायारानी––देखो रंज न होना, मैं तुमसे एक बात और पूछती हूँ।

भूतनाथ––(हँसकर) पूछिये-पूछिये।

मायारानी––अगर मैं धोखा देकर कोई दूसरी चीज तुम्हें दे दूँ, तो तुम कैसे समझोगे कि अजायबघर की ताली यही है?