सिवाय मेरे कोई दूसरा उन्हें निकाल ही नहीं सकता। बहुत दिनों से मैं स्वयं उस खोह में रहता हूँ और मेरे आदमी भी अभी तक वहाँ मौजूद हैं। अब केवल एक बात का खुटका मेरे जी में लगा हुआ है।
मायारानी––वह क्या?
भूतनाथ––यदि कमलिनी मुझसे पूछेगी कि किशोरी और कामिनी को कहाँ रख आये तो मैं क्या जवाब दूँगा? यदि यह कहूँगा कि रोहतासगढ़ तुम्हारे तालाब वाले मकान में रख आया हूँ तो बहुत जल्द झूठा बनूँगा और सब भंडा फूट जायगा।
मायारानी––हाँ सो तो ठीक है, मगर तुम चालाक हो, इसके लिए भी कोई न कोई बात जरूर सोच लोगे।
भूतनाथ––खैर, जो होगा देखा जायगा। अब कहिये कि आपका काम तो मैंने कर दिया अब इसका इनाम मुझे क्या मिलता है? आपका कौल है कि जो माँगोगे वही मिलेगा।
मायारानी––हाँ-हाँ, जो कुछ तुम माँगोगे वही मिलेगा। जरा दरोगा वाले मकान में चल कर उसे मार कर निश्चिन्त हो जाऊँ तो तुम्हें मुँहमांगा इनाम दूँ। अच्छा यह तो कहो कि तुम चाहते क्या हो?
भूतनाथ––दरोगा वाला मकान मुझे दे दीजिए और उसमें जो अजायबघर है उसकी ताली मेरे हवाले कर दीजिए।
मायारानी––(चौंककर) उस अजायबघर का हाल तुम्हें कैसे मालूम हुआ?
भूतनाथ––कमलिनी की जुबानी मैंने सुना था कि वह भी तिलिस्म ही है और उसमें बहुत अच्छी-अच्छी चीजें हैं?
मायारानी––ठीक है मगर उसमें बहुत-सी ऐसी चीजें हैं जो यदि मेरे दुश्मनों के हाथ लगें तो आफत ही हो जाय।
भूतनाथ––मैं उस जगह को अपने लिए चाहता हूँ किसी दूसरे के लिए नहीं, मेरे रहते कोई दूसरा आदमी उस मकान से फायदा नहीं उठा सकता।
मायारानी––(देर तक देखकर) खैर मैं दूँगी क्योंकि तुमने मुझ पर भारी अहसान किया है, मगर उस ताली को बड़ी हिफाजत से रखना। यद्यपि उसका पूरा-पूरा हाल मुझे मालूम नहीं है तथापि मैं समझती हूँ कि वह कोई अनूठी चीज है क्योंकि गोपालसिंह उसे बड़े यत्न से अपने पास रखता था, हाँ अगर तुम अजायबघर की ताली मुझसे न लो तो मैं बहुत ज्यादा दौलत तुम्हें देने के लिए तैयार हूँ।
भूतनाथ––आप तरद्दुद न कीजिये, उस चीज को आपका कोई दुश्मन मेरे कब्जे से नहीं ले जा सकता और आप देख लेंगी कि महीने भर के अन्दर ही अन्दर मैं आपके दुश्मनों का नाम-निशान मिटा दूँगा और खुल्लमखुल्ला अपनी प्यारी स्त्री को लेकर उस मकान रह मर आपकी बदौलत खुशी से जिन्दगी बिताऊँगा।
मायारानी––(ऊँची साँस लेकर) अच्छा, दूँगी।
भूतनाथ––तो अब उसके देने में विलम्ब क्या है?
मायारानी––बस, उस काम से निपट जाने की देर है।