पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२१३

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कमलिनी––मैं पहले ही समझ गई थी कि आप यही बात मुझसे कहेंगे। इसमें कोई सन्देह नहीं कि भूतनाथ ने जो कुछ काम किये हैं वे उसकी नेकनामी, ईमानदारी और ऐयारी में बट्टा लगाते हैं, परन्तु आप कोई तरद्दुद न कीजिए, मैं बड़े-बड़े बेईमानों से अपना मतलब निकाल लेती हूँ, मेरे साथ वह अगर जरा भी दगा करेगा तो उसे बेकाम करके छोड़ दूँगी।

शेरसिंह––मैं समझता हूँ कि आप उसका पूरा-पूरा हाल नहीं जानतीं।

कमलिनी––भूतनाथ यद्यपि तुम्हारा भाई है, मगर मैं उसका हाल तुमसे भी ज्यादा जानती हूँ। तुम्हें अगर डर है तो इसी बात का कि यदि कुमारों को मालूम हो जायगा कि वह तुम्हारा भाई है तो तुम्हारी तरफ से उनका दिल मैला हो जायगा या भूतनाथ अगर कोई बुराई कर बैठेगा तो मुफ्त में तुम भी बदनाम किये जाओगे।

शेरसिंह––हाँ-हाँ, बस इसी सोच में मैं मरा जाता हूँ!

कमलिनी––तो तुम निश्चिन्त रहो। तुम्हारे सिर कोई बदनामी न आवेगी, जो कुछ होगा मैं समझ लूँगी।

शेरसिंह––अख्तियार आपको है, मुझे जो कुछ कहना था कह चुका।

दोरों कुमार और उनके साथी लोग टीले पर चढ़ चुके थे, इसके बाद शेरसिंह को अपने साथ लिए हुए कमलिनी भी वहाँ जा पहुँची। टीले के ऊपर की अवस्था देखने से मालूम होता था कि किसी जमाने में वहाँ पर जरूर कोई खूबसूरत मकान बना हुआ होगा, मगर इस समय तो एक कोठरी के सिवाय वहाँ और कुछ भी मौजूद न था। यह कोठरी बीस-पच्चीस आदमियों के बैठने के योग्य थी। कोठरी के बीचोंबीच पत्थर का एक चबूतरा बना हुआ था और उसके ऊपर पत्थर ही का शेर बैठा था। कमलिनी ने उसी जगह सभी को बैठने के लिए कहा और भूतनाथ की तरफ देखकर बोली, "इसी जगह से एक रास्ता मायारानी के तिलिस्मी बाग में गया है। तुम्हें छोड़ सब लोगों को लेकर मैं वहाँ जाऊँगी और कुछ दिनों तक उसी बाग में रहकर अपना काम करूँगी। तब तक के लिए एक दूसरा काम तुम्हारे सुपुर्द करती हूँ, आशा है कि तुम बड़ी होशियारी से उस काम को करोगे।

भूतनाथ––जो कुछ आज्ञा हो, मैं करने के लिए तैयार हूँ, मगर इस समय सबसे पहले मैं दो-चार बातें आपसे कहना चाहता हूँ, यदि आप एकान्त में सुनें तो ठीक है।

कमलिनी––कोई हर्ज नहीं, तुम जो कुछ कहोगे मैं सुनने के लिए तैयार हूँ।

इतना कहकर भूतनाथ को साथ लिए कमलिनी उस कोठरी के बाहर निकल आई और दूसरी तरफ एक पत्थर की चट्टान पर बैठकर भूतनाथ से बातचीत करने लगी। दो घड़ी से ज्यादा दोनों में बातचीत होती रही, जिसे इस जगह लिखना हम मुनासिब नहीं समझते। अन्त में भूतनाथ ने अपने बटुए में से कलम-दावात और कागज का टुकड़ा निकालकर कमलिनी के सामने रख दिया। कमलिनी ने एक चिट्ठी अपने बहनोई राजा गोपालसिंह के नाम लिखी और उसमें यह लिखा कि "भूतनाथ को यह चिट्ठी देकर हम तुम्हारे पास भेजते हैं। इसे बहुत ही नेक और ईमानदार समझना और हर एक काम में इसकी राय और मदद लेना। यदि यह किसी जगह ले जाये तो बेखटके