कुँअर इन्द्रजीतसिंह की घबराहट का तो ठिकाना ही न रहा, क्योंकि तारा ही की जुबानी रोहतासगढ़ का हाल और बेचारी किशोरी की खबर सुनने वाले थे और इसी के बाद कमलिनी का असल भेद उन्हें मालूम होने को था।
कमलिनी––(कुमार की तरफ देखकर) जिस तरह इन दोनों आदमियों को मैं तालाब के बाहर लायी हूँ उसी तरह तारा को भी लाना पड़ेगा।
कुमार––हाँ-हाँ, उसे बहुत जल्द लाओ। मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ।
कमलिनी––आप क्यों तकलीफ करते हैं। बैठिए, मैं उसे अभी लाती हूँ। (दोनों आदमियों की तरफ देखकर) चलो, तुम दोनों को भी तालाब के बाहर पहुँचा दूँ।
लाचार कुमार उसी जगह बैठे रहे। उन दोनों आदमियों को साथ लेकर कमलिनी वहाँ से चली गयी तथा थोड़ी देर में तारा को लेकर आ पहुँची। कुँअर इन्द्रजीत सिंह को देखकर तारा चौंकी और बोली––
तारा––क्या कुमार यहाँ विराज रहे हैं?
कमलिनी––हाँ, कई दिनों से यहाँ हैं और तुम्हारी राह देख रहे हैं। तुम्हारी जुबानी रोहतासगढ़ और किशोरी तथा लाली और कुन्दन का असल भेद और हाल सुनने के लिए बड़े बेचैन हो रहे हैं। आओ, मेरे पास बैठ जाओ और कहो, क्या हाल है?
तारा––(ऊँची साँस लेकर) अफसोस, मैं इस समय यहाँ बैठ नहीं सकती और न कुछ वहाँ का हाल ही कह सकती हूँ, क्योंकि हम लोगों का यह समय बड़ा ही अमूल्य है। कुमार को यहाँ देख मैं बहुत खुश हुई, अब वह काम बखूबी निकल जायगा! कुमार की तरफ देखकर) बेचारी किशोरी इस समय बड़े ही संकट में पड़ी हुई है। अगर आप उनकी जान बचाना चाहते हैं तो इस समय मुझसे कुछ न पूछिये, बस तुरन्त खड़े होइए और जहाँ मैं चलती हूँ, चले चलिये, हाँ, यदि बन बड़ा तो रास्ते में मैं वहाँ का हाल आपसे कहूँगी। (कमलिनी की तरफ देखकर) आप भी चलिए और कुछ आदमी अपने साथ लेती चलिए, मगर सब कोई घोड़े पर सवार और लड़ाई के सामान से दुरुस्त रहें।
कमलिनी––ऐसा ही होगा।
कुमार––(खड़े होकर) मैं तैयार हूँ।
तीनों आदमी छत के नीचे उतरे और तारा के कहे मुताबिक कार्रवाई की गयी।
सुबह की सफेदी आसमान पर निकलना ही चाहती है। आओ, देखो, हमारा बहादुर नौजवान कुँअर इन्द्रजीतसिंह किस ठाठ से मुश्की घोड़े पर सवार मैदान की तरफ घोड़ा फेंके चला जा रहा है और उसकी पेटी से लटकती हुई जड़ाऊ नयाम (म्यान) की तलवार किस तरह उछल-उछलकर घोड़े के पेट में थपकियाँ मार रही है, मानो उसकी चाल की तेजी पर शाबाशी दे रही है। कुमार के आगे-आगे घोड़े पर सवार तारा जा रही है, कुमार के पीछे सब्ज घोड़े पर कमलिनी सवार है और घोड़े की तेजी को बढ़ाकर कुमार के बराबर हुआ चाहती है। उसके पीछे दस दिलावर और बहादुर सवार घोड़ा फेंके चले जा रहे हैं और इस जंगली मैदान के सन्नाटे को घोड़ों के टापों की आवाज से तोड़ रहे हैं।