पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२०९

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कमलिनी––जी हाँ, हम लोगों ने तो यही इरादा कर लिया है कि काशी चलकर किसी गुप्त स्थान में रहेंगे और उसी जगह से अपनी कार्रवाई करेंगे?

गोपालसिंह––मगर मेरी राय तो कुछ दूसरी है।

कमलिनी––वह क्या? मुझे विश्वास है कि आप बनिस्बत मेरे हमें बहुत अच्छी राय देंगे।

गोपालसिंह––यद्यपि मैं इस शहर जमानिया का राजा हूँ और इस शहर को फिर कब्जे में कर सकता हूँ, परन्तु पाँच वर्ष तक मेरे मरने की झूठी खबर लोगों में फैली रहने के कारण यहाँ की रिआया के मन में बहुत कुछ फर्क पड़ गया होगा। यदि ऐसा न भी हो तो भी मैं अपने को जाहिर नहीं करना चाहता और न मायारानी को ही अभी जान से मारूँगा, क्योंकि यदि वह मर ही जायगी तो अपने किये का यथार्थ फल मेरे देखते कौन भोगेगा? इसलिए मैं थोड़े दिनों तक छिपे रहकर ही उसे सजा देना उचित समझता हूँ।

कमलिनी––जैसी मर्जी।

गोपालसिंह––(कमलिनी से) इसलिए मैं चाहता हूँ कि कुँअर साहब अपना एक ऐयार मुझे दें, मैं उसे साथ लेकर काशी जाऊँगा और किशोरी तथा कामिनी को, जो मनोरमा के मकान में कैद हैं, बहुत जल्द छुड़ा लाऊँगा, तब तक तुम दोनों कुमारों और लाड़िली को अपने साथ लेकर मायारानी के उस तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में रहो। वहाँ खाने में लिए मेवों की बहुतायत है और पानी का चश्मा भी जारी है। मायारानी को तुम लोगों का हाल मालूम न होगा, क्योंकि उसे वह स्थान मालूम नहीं है और न वहाँ तक जा ही सकती है। उसी जगह रहकर दोनों कुमारों को एक-दो दफे 'रिक्तग्रंथ' शुरू से आखिर तक अच्छी तरह पढ़ जाना चाहिए। जो बातें इनकी समझ में न आवें, तुम समझा देना और इसी बीच में वहाँ की बहुत-सी अद्भुत बातें भी ये देख लेंगे, इसलिए कि इनको बहुत जल्द वह तिलिस्म तोड़ना होगा, जैसा कि हम बुजुर्गों की लिखी किताबों में देख चुके हैं, वह इन्हीं लोगों के हाथ से टूटेगा।

कमलिनी––बेशक-बेशक।

गोपालसिंह––और एक ऐयार को रोहतासगढ़ भेज दो कि वहाँ जाकर महाराज वीरेन्द्रसिंह को कुमारी के कुशल-मंगल का हाल कहे और थोड़ी-सी फौज अपने साथ ले आकर जमानिया के मुकाबिले में लड़ाई शुरू कर दे, मगर वह लड़ाई जोर के साथ शीघ्र बखेड़ा निपटाने की नीयत से न की जाय जब तक कि हम लोग दूसरा हुक्म न दें। बस इसके बाद जब मैं अपना काम करके अर्थात् किशोरी और कामिनी को छुड़ाकर लौटूँगा और तुमसे मिलूँगा तो जो कुछ मुनासिब होगा किया जायगा। हाँ देवमन्दिर में रहकर मौका मिले तो मायारानी को गुप्त रूप रो छेड़ती रहना।

कमलिनी––आपकी राय बहुत ठीक है, मगर आप कैद की तकलीफ उठाने के कारण बहुत ही सुस्त और कमजोर हो रहे हैं, इतनी तकलीफ क्योंकर उठा सकेंगे?

गोपालसिंह––तुम इसकी चिन्ता मत करो! (कुमारों की तरफ देखकर) आप लोग मेरी राय पसन्द करते हैं या नहीं?