बाहर हए उस समय उन्होंने राजा वीरेन्द्रसिंह का जिक्र किया और कहा कि हरामजादी मायारानी ने राजा वीरेन्द्रसिंह और रानी चन्द्रकान्ता को भी इस तिलिस्म में कहीं पर कैद कर रखा है जिनका पता नहीं लगता। यह सुनते ही मैं उन्हें साथ लिए हुए फिर उसी तिलिस्मी बाग में चला गया। जहाँ-जहाँ मैं जा सकता था, जाकर अच्छी तरह पता लगाया क्योंकि कैद से छूट जाने पर मैं बिल्कुल ही लापरवाह और निडर हो गया था।
इन्द्रजीतसिंह––यह काम आपने बहुत ही उत्तम किया। हाँ, तो उनका कहीं पता लगा?
गोपालसिंह––(सिर हिला कर) नहीं, वह खबर बिल्कुल झूठी थी। उसने आप लोगों की धोखा देने के लिए अपने ही दो आदमियों को राजा वीरेन्द्रसिंह और रानी चन्द्रकान्ता की बनाकर रंग के कैद कर रखा है।
कमलिनी––यह आपको कैसे निश्चय हुआ?
गोपालसिंह––हमने स्वयं उन दोनों को अच्छी तरह आजमा कर देख लिया।
इन्द्रजीतसिंह––यह खबर सुन कर हम लोगों को हद से ज्यादा खुशी हई। अब हम लोग उनकी तरफ से निश्चिन्त हो गये और केवल किशोरी और कामिनी की फिक्र रह गई।
तेजसिंह––बेशक हम लोग उनकी तरफ से निश्चिन्त हो गये (राजा गोपालसिंह की तरफ इशारा करके) इनके साथ दो दिन तक उस बाग में रहने और गुप्त स्थानों में घूमने का मौका मिला। ऐसी-ऐसी चीजें देखने में आई कि होश दंग हो गये। यद्यपि राजा वीरेन्द्रसिंह के साथ विक्रमी तिलिस्म में मैं बहुत कुछ तमाशा देख चुका हूँ परन्तु अब यही कहते बन पड़ता है कि इस तिलिस्म के आगे उसकी कोई हकीकत न थी।
कमलिनी––यह उस तिलिस्म के राजा ही ठहरे, फिर इनसे ज्यादा वहाँ का हाल कौन जान सकता था और किसकी सामर्थ्य थी कि दो दिन तक उस बाग में आपको रख कर घुमाये? वहाँ का जितना हाल ये जानते हैं उसका सोलहवाँ हिस्सा भी मायारानी नहीं जानती। ये बेचारे नेक और धर्मात्मा हैं, पर न मालूम क्योंकर उस कम्बख्त के धोखे में पड़ गये।
आनन्दसिंह––बेशक, इनका किस्सा बहुत ही दिलचस्प होगा।
गोपालसिंह––मैं अपना अनूठा किस्सा आपसे कहूँगा जिसे सुनकर आप अफसोस करेंगे। (लाड़िली की तरफ देख कर) क्यों लाड़िली, तू अच्छी तरह से तो है?
लाड़िली––(गद्गद स्वर से) इस समय मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं! क्या स्वप्न में भी गुमान हो सकता था कि इस जिन्दगी में पुनः आपको देखूँगी? यह दिन आज कमलिनी बहिन की बदौलत देखने में आया।
गोपालसिंह––बेशक-बेशक, और ये पाँच वर्ष मैंने किस मुसीबत में काटे हैं, सो बस मैं ही जानता हूँ (कमलिनी की तरफ देख कर) मगर, तुझे उस तिलिस्मी बाग के अन्दर घुसने का साहस कैसे हुआ?
कमलिनी––'रिक्तगन्थ' मेरे हाथ लग गया इसी से मैं इतना काम कर सकी।